अध्यात्म यानि – वह अध्ययन जिसके द्वारा आत्मा को, खुद के तत्व स्वरूप को जाना जा सके | अगर हम अपने अंदर के सफर में (तप में) व्यस्त हो गए तो भारत में आम धारणा है कि व्यक्ति अपनी भौतिक जगत की जिम्मेदारियों से दूर भागने लगता है और अंततः वैराग्य में स्थापित हो सन्यासी बन जाता है |
डर के पीछे कारण भी है | आम लोग जब सिद्धार्थ गौतम (एक राजकुमार) के बारे में पढ़ते हैं, किस तरह वे पत्नी और बच्चे के पैर छूकर रातोरात घर से हमेशा के लिए निकल लिए और कभी राजमहल में वापस लौट कर नहीं आए तो लोगों का डर स्वाभाविक है |
अगर हम हरिद्वार, ऋषिकेश, वाराणसी, नासिक और उज्जैन इत्यादि धार्मिक स्थलों पर जाएं तो हजारों नहीं लाखों मिल जाएंगे जो घर छोड़कर भगवान की खोज में निकल गए और कभी वापस घर नहीं लौटे |
सिद्धार्थ गौतम और इन धार्मिक स्थलों में रह रहे लोगों में एक बात common है, सभी अपनी जिम्मेदारियां पूरी किए बगैर घर से रारोरात भाग गए | घर में permission मांगते भी तो नहीं मिलती | महर्षि रमण भी इसी category में आते हैं |
सिद्धार्थ गौतम ने 12 साल तपस्या की बोधि वृक्ष के नीचे और ज्ञान प्राप्त कर लिया, और गौतम बुद्ध बनकर दुनिया को राह दिखाई | महर्षि रमण की मां भी अरुणाचल पर्वत पर आकर रहने लगी जहां उनका बेटा रमण तपस्या में लीन था | महर्षि रमण अभी तक आखिरी व्यक्ति है धरती पर जिन्हें तत्वज्ञान प्राप्त हुआ | कहते हैं अगला कैवल्य ज्ञानी कल्कि अवतार खुद होगा |
बाकी जो घर से भागे लोग धार्मिक स्थलों में रह रहें हैं और मिला कुछ नहीं, यह बात नहीं समझ पा रहे हैं कि घर से भागकर, अपनी जिम्मेदारियों की पूर्ण निर्जरा किए बिना आप घर नहीं छोड़ सकते – ब्रह्म इजाज़त नहीं देते | भयंकर पाप लगता है | तो जो इंसान आध्यात्मिक होना चाहता है या तो वह घर त्यागने से पहले घर के हर सदस्य से इजाज़त ले (जबरदस्ती नहीं), अन्यथा ब्रह्मनुसार उसे सारी तपस्या घर में रहते हुए ही करनी होगी |
15 वर्ष की आयु में जब मैंने हिमालय में जाकर तपस्या करने के लिए मां से इजाजत मांगी तो मां ने मना कर दिया | फिर मैंने घर में रहकर महर्षि रमण का रास्ता अपना लिया और अंततः 37 वर्ष की आयु में ब्रह्म का साक्षात्कार हो ही गया |
How to indulge in Spirituality when married | गृहस्थ जीवन में अध्यात्म का रास्ता कैसे पकड़ें