आत्मा परमात्मा का अंश है लेकिन अपने ब्रह्मांडीय सफर के दौरान अशुद्धियों से घिर जाता है | हम खुद आत्मा नहीं | हमारी आत्मा तो सूर्य के गर्भ में विद्यमान है और वही से remote control से हमें चलाती है | हम तो मात्र एक जीवन के लिए हैं | मृत्यु के बाद हमारी आत्मा अगले जीवन में क्या शरीर धारण करेगी हमें मालूम नहीं |
अगर हम अपनी आत्मा की शुद्धि जल्दी चाहते हैं और वो भी इसी जीवन में तो हमें अध्यात्म में कूदना पड़ेगा | भगवान ने तो लंबी पारी – 11 लाख मनुष्य योनियों की लिखी है | अब यह हमारे ऊपर निर्भर है हम आध्यात्मिक सफर कब शुरू करते हैं | इसी जीवन में या अगले किसी जीवन के लिए postpone कर देते हैं |
बिना मनुष्य के अध्यात्म में उतरे, आत्मा जैसी है वैसे ही रहेगी | कर्म उस शरीर को ही करना होगा जो उसने धारण कर रखा है | हम अजर अमर नहीं | एक दिन मृत्यु को प्राप्त होंगे | सुख दुख भी सहेंगे | 84 लाखवी योनि में स्थापित होना मनुष्य योनि की मजबूरी है, तभी साधक मोक्ष की दहलीज पर पहुंचेगा |
Difference between Atman and Brahman | आत्मा परमात्मा में भेद | Vijay Kumar Atma Jnani