मनुष्य (जीव) का कर्तव्य है निष्काम कर्म करना, तभी आत्मा (चेतना) अपने शुद्ध स्वरूप को वापस पाएगी | शरीर स्वयं से कुछ नही कर सकता जब तक चेतना साथ न हो | चेतना (आत्मा) के बाहर निकलते ही शरीर मृत हो जाता है |
आत्मा स्वयं निष्क्रिय रहती है | उसे कर्म करने के लिए शरीर की आवश्यकता होती है | इसलिए भगवान और आत्मा को हमेशा दृष्टा कहा गया है |
1.1 million manifestations in Human form? मनुष्य रूप में ११ लाख योनियों का सफर | Vijay Kumar