परमात्मा हमारे अंदर अंश रूप में मौजूद है – आत्मा स्वरूप | अपने ब्रह्मांडीय सफर में आत्मा ने अपने अंदर अशुद्धियां ले लीं तभी तो उसे जीव रूप धारण करना पड़ता है | जब जीव पुण्य कर्म करता है तो अशुद्धियां कम होती जाती हैं | अब जीव हर समय तो पुण्य कर्म करेगा नहीं, पाप कर्म भी करेगा, तो दुर्गति भी होगी | जैसा कर्म वैसा कर्मफल |
अपनी दुर्गति/ दुखों के लिए हम कभी भी भगवान को दोष नहीं दे सकते | जो कर्म हमने इस जीवन में किए और पीछे के संचित कर्मफल के आधार पर हम सुख/ दुख भोगते हैं | जब तक आत्मा अशुद्धियां से घिरी है वह एक के बाद एक शरीर धारण करती रहेगी | शुद्ध होते ही आत्मा ब्रह्मलीन हो जाती है |
What Karma really means? कर्म का वास्तव में क्या अर्थ है? Vijay Kumar Atma Jnani