कर्म प्रधान होता है या धर्म प्रधान होता है ?


धर्म और कर्म दोनों ब्रह्म द्वारा रचित वो विधियां हैं जिनका इस्तेमाल कर इंसान जीवन में आगे बढ़ता है | धर्म हर जीव में (सभी 84 लाख योनियों में) जन्म से मौजूद रहता है | यह धर्म ही है जो मनुष्य को पशु बनने से/ मरने मारने से रोकता है | अगर जीव के अंदर धर्म न हो तो ब्रह्माण्ड वहीं रुक जाएगा | हर जगह अफरातफरी का माहौल, एक दूसरे को मार कर खा जाएंगे |

 

इंसान रूप में धर्म ज्यादा प्रखर होता है निचली योनियों की अपेक्षा | मनुष्य के जीवन में कर्म की प्रधानता इस बात से समझी जा सकती है – कर्मों की संपूर्ण निर्जरा होते ही आप महावीर, महर्षि रमण के level पर पहुंच, मोक्ष ले लेते हो | पूरे ब्रह्मांड में जीवन को आगे बढ़ाने में सिर्फ धर्म और कर्म का योगदान है | यह धर्म ही है जो पशुओं को मनुष्य योनि की ओर धकेलता है |

 

सिर्फ और सिर्फ धर्म और कर्म को भलीभांति समझ कोई भी इंसान अध्यात्म की राह पकड़ इसी जीवन में तत्वज्ञानी बन सकता है |

 

What is the true Meaning of Dharma? धर्म का सही अर्थ क्या है? Vijay Kumar Atma Jnani

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