मनुष्य को धर्म और अध्यात्म नहीं कामुकता जल्दी प्रभावित करती है


अगर सेक्स में attraction नहीं होता तो गृहस्थ कैसे चलता | ब्रह्म ने ये क्रिया इसी तरह से रची कि दोनों एक दूसरे से बंधे रहें | अब सेक्सुअल genes में यह तो नहीं लिखा कि इसके साथ प्यार कर सकते हो, इसके साथ नहीं | साथ में मनुष्यों को विवेक दे दिया आत्मसंयम के लिए | लेकिन मनुष्य पशु की भांति एक दूसरे के पीछे भागने लगे तो क्या ?

 

जीवन को आगे बढ़ने के लिए सेक्सुअल क्रिया में असीमित आनंद की अनुभूति दी है चाहे वह क्षणिक हो | इसके विपरित धार्मिक और आध्यात्मिक क्रियाओं में फल तक पहुंचने के लिए लंबा समय दिया है | अध्यात्म में तो यह भी नहीं मालूम फल मिलेगा भी नहीं और कब मिलेगा – इस जन्म में या अगले किसी जन्म में |

 

धार्मिक कर्मकांडो में भी फल दिखाई थोड़े ही देता है | गृह प्रवेश के समय यज्ञ किया – फल भगवान पर ही छोड़ना पड़ता है | जीवन का मूल यही है – पुण्य कर्म करते रहो – फल की चिंता मत करो | अध्यात्म में इसी कारण ब्रह्मचर्य को इतना महत्व दिया गया है |

 

What Karma really means? कर्म का वास्तव में क्या अर्थ है? Vijay Kumar Atma Jnani

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