शिष्य के गुरू से आगे निकल जाने पर गुरू को कैसा महसूस होता है ?


सच्चा आध्यात्मिक गुरु एक विवेकानंद को पनपते देख कितना खुश होता होगा | जब रामकृष्ण परमहंस के पास स्वामी विवेकानंद गए और कहा, क्या आप मुझे भगवान का दर्शन करा सकते हैं तो रामकृष्ण परमहंस ने उनके कंधे पर अपनी लात रख दी | फिर क्या था, स्वामी विवेकानंद तो गहन आनंद में डूब गए और कहने पर भी अपने ऊपर से टांग हटवाने को कतई तैयार नहीं | ऐसी आनन्दानुभूति उन्हें पहले कभी नही हुई थी |

 

जब रामकृष्ण परमहंस ने विवेकानंद से पूछा कि इस जन्म में प्रभु को पाना चाहते हो, तो जवाब मिला – नहीं | रामकृष्ण परमहंस हतप्रभ | यह क्या ! रामकृष्ण परमहंस जानते थे इस अवस्था में स्वामी विवेकानंद को भगवान के साक्षात्कार में ज्यादा वक़्त नहीं लगेगा, लेकिन वो मना कर वहां से चला गया |

 

ऐसे वक़्त गुरु की स्थिति सोचिए | रामकृष्ण परमहंस मनमसोस के रह गए | कर भी क्या सकते थे ! स्वामी विवेकानन्द ने उनसे कहा, प्रभु का साक्षात्कार अगले जन्म में और इस जन्म में कुछ जिम्मेदारियां हैं जो उन्हें अवश्य पूरी करनी हैं | अध्यात्म में अगर स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस से आगे निकल भी जाते, तो उन्हें बेहद खुशी होती |

 

अगर हम ध्यान से देखेंगे, किसी भी फील्ड में सच्चा गुरु हमेशा अपने शिष्य को आगे बढ़ते देख बेहद खुश होता है | सिर्फ इसलिए नहीं कि उसने गुरु के पासंग ज्ञान प्राप्त कर लिया बल्कि न जाने कितना और आगे जाएगा, आविष्कार करेगा |

 

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