एक छोटी सी कुटिया में रह रहे साधु से जब किसी ने पूछा, इतनी छोटी कुटिया में आपको तकलीफ नहीं होती ? तो वह अत्यंत परिपक्व साधु बोला, सोच रहा हूं कुछ सामान काम कर दूं, जरूरत से ज्यादा प्रतीत हो रहा है | जितनी हमारी इच्छाएं उतनी बड़ी हमारी तकलीफें | अगर इच्छाएं ही नहीं होंगी तो कमी काहे की ?
कोई इंसान गरीब नहीं होता, हमारे विचार हमें गरीब बना देते हैं | जब cycle से काम ठीक चल रहा है तो ख्वाहिश car की क्यों ? समस्या खड़ी होती है जब परिवार के सदस्य रोज़ नई मांगे देने लगें |
अकेला इंसान कम संसाधनों से काम आराम से चला लेता है लेकिन आज की नई पीढ़ी बिल्कुल adjust नहीं करना चाहती | प्रभु के साक्षात्कार के बाद मैं अपना काम 5000/=, 50,000/= या 5,00,000/= per month में चला सकता हूं पर क्या परिवार 5000/= में राज़ी होगा ? शायद उनके लिए 50,000/= p m भी कम हों |
लगभग 250 वर्ष पूर्व जब गुरुकुल शिक्षापद्धति कायम थी, किसी तरह की होड़ भारतवर्ष में नहीं होती थी | सब शांति और खुशी से जीते थे | पाश्चात्य जगत ने हमें 200 साल गुलाम ही नहीं बनाया, हमारी खुशियां भी छीन ली | अब दोबारा 2034 तक भारत में स्वर्ण युग चालू होने जा रहा है, फिर आराम ही आराम |
भारत अखंड भारत कब तक बनेगा – 2032? Vijay Kumar Atma Jnani