रोज उठना तैयार होना कमाने जाना खाना और सो जाना | क्या यही असली जिंदगी है ?


जब मैं 5 वर्ष का था और भगवान ने मेरी जिंदगी बख्श दी तो मेरे अंदर ये प्रश्न उठा कि यह जीना मरना क्या होता है | लगभग 6 वर्ष की उम्र में बेहद जिज्ञासा उत्पन्न हो गई भगवान को जानने की – सोचा उन्हीं से पूछ लूंगा | अब न जाने भगवान कब मिलेंगे तो घर के सभी बुजुर्गो से प्रश्न दे प्रश्न – सभी का लगभग यही जवाब ऐसे ही होता है |

 

मां, बुआ और दादी के उत्तर से यह तो समझ आया कि स्त्रियों के व्यस्त जीवन में ऐसे प्रश्नों के उत्तर के लिए वक़्त कहां ? दादाजी से कहा – कुछ पूछना है | दादाजी को भनक लग चुकी थी कि पप्पू कुछ पूछना चाहता है तो टालते रहे | 7 वर्ष की आयु के लगभग सुबह 7 बजे दादाजी का फरमान आया – पप्पू को भेजो |

 

मैं प्रश्न लेकर दादाजी के सामने बैठ गया – उन्होंने कहा पूछो – फिर दूसरा और इससे पहले तीसरा कहता – वह बोले तेरे एक भी प्रश्न का उत्तर मेरे पास नहीं, न कभी होगा | और मैं अटक गया | स्कूल के मास्टरजी और हेड मास्टरजी से पहले ही पूछ चुका था | मेरा मूल प्रश्न था – जन्म मरण के चक्रव्यूह से छुटकारा |

 

अंततः जब 7 1/2 वर्ष की आयु में खुद ब्रह्म मेरे गुरु बनने को राजी हो गए तो मैंने उनसे प्रश्नों की झड़ी लगा दी | जब जब वक़्त मिलता ब्रह्म से बात कर लेता | 8 वर्ष की आयु में ब्रह्म ने एक दिन धर दबोचा – तू तो मेरे पीछे आना चाहता था – क्या हुआ ? मैंने कहा सोच कर बताता हूं | और फिर स्कूल के कामों में व्यस्त |

 

8 1/2 वर्ष की आयु में ब्रह्म ने फिर पूछा और कहा 1 दिन की मोहलत देता हूं – तय करले | साथ में ब्रह्म बोले मेरे पीछे आने, मुझे प्राप्त करने का मतलब जानता है – जन्म और मृत्यु के चक्रव्यूह से छुटकारा | मैंने कुछ जवाब नहीं दिया – अंदर खुशी के गुब्बारे जो फूट रहे थे | अरे इसी प्रश्न का उत्तर तो ढूंढ़ रहा था ?

 

अगले दिन जैसे ही ब्रह्म बोले – फाइनल किया, मैंतो पहले से ही तैयार बैठा था और मुंह से निकला – हां, हां और तीसरी बार हां | मन में खयाल आया – चलो भगवान से सेटिंग हो गई – जन्म और मरण के चक्र से हमेशा के लिए free |

 

और मेरी ब्रह्म से मिलने की कवायद शुरू हो गई | लगभग 24 की उम्र में मैं 12 वर्ष की ध्यान और ब्रह्मचर्य की तपस्या में उतरा और 37 वर्ष की आयु में ब्रह्म का साक्षात्कार | जीवन मरण की कहानी खत्म हुई |

 

कोई भी इंसान इस धरती पर अगर जन्म मरण के चक्रव्यूह से निकलना चाहता है तो अध्यात्म का रास्ता पकड़ सब कुछ हासिल कर सकता है इसी जीवन में – यदि हमारे अंदर स्वामी विवेकानंद वाली जिज्ञासा है | संभव तो है – मुश्किलें हज़ार आएं तो आएं |

 

12 years Tapasya | 12 साल की घोर तपस्या का सच | Vijay Kumar Atma Jnani

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