ब्रह्म के दर्शन नहीं सिर्फ और सिर्फ साक्षात्कार ही होता है | हम जो वास्तव में एक आत्मा हैं, और जब ध्यान के माध्यम से शुद्ध आत्मा बन जाते हैं तो हमारे मनुष्य जीवन का अंत हो जाता है | एक शुद्ध आत्मा का शरीर धारण करने में फिर कोई प्रयोजन नहीं रह जाता | भगवान के दर्शन करने के कोई मायने नहीं, भगवान निराकार हैं, उनके क्या दर्शन करेंगे आप ?
धार्मिक अनुष्ठानों के द्वारा भगवान कभी मिलते नहीं | रामकृष्ण परमहंस को ही ले लीजिए – काली के अनन्य भक्त | जब उन्होंने देखा भक्ति मार्ग से प्रभु मिलेंगे नहीं तो उन्होंने भक्ति मार्ग छोड़ ज्ञानयोग की राह पकड़ ली | Religion (जिसे आज लोग धर्म कहने लगे हैं, जबकि धर्म के मायने कुछ और हैं) के रास्ते कभी भगवान के दर्शन नहीं होते |
महावीर, बुद्ध, आदि शंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस और महर्षि रमण – सभी ने 12 साल की गहन तपस्या की (जो ज्ञानयोग का रास्ता है), तब जाकर सभी का ब्रह्म से साक्षात्कार हुआ, दर्शन नहीं | धार्मिक प्रपंचों को छोड़ अगर हम अध्यात्म की राह पकड़ लें तो संभव है इस जन्म में हम पहले स्वामी विवेकानंद और फिर रामकृष्ण परमहंस के लेवल पर पहुंचने में कामयाब हो जाएं |
भक्ति मार्ग, प्रभु के प्रति जिस level का समर्पण मांगता है वह इस कलियुग में संभव नहीं तभी रामकृष्ण परमहंस ने अपना रास्ता भक्ति से ज्ञान की तरफ मोड़ा था |
What is Bhakti | भक्ति क्या है | Vijay Kumar Atma Jnani