ध्यान का प्रथम स्तर क्या है ?


अगर आप ध्यान की सही प्रक्रिया को जानते हैं तो यह समझते देर नहीं लगेगी कि ध्यान में कोई स्तर नहीं होते | ध्यान की आवश्यकता होती है जब हम अध्यात्म के रास्ते पर चलकर ब्रह्म तक पहुंचना चाहते हैं, उससे आत्मसाक्षात्कार करना चाहते हैं |

 

ध्यान यानि अपने अंदर आते हजारों लाखों विचारों को जड़ से खत्म कर देना, यानि हर प्रश्न के मूल उत्तर को ढूंढ़ लेना, सारगर्भित तह तक पहुंच जाना | महर्षि रमण ने इसे self enquiry का नाम दिया |

 

ध्यान का मतलब यह नहीं हम एक कमरे में बैठकर एक प्रकाश के माध्यम पर अपने विचारों को केन्द्रित करें | ध्यान के माध्यम से हम जब जहन में उमड़ते हजारों विचारों को जड़ से खत्म करने की कोशिश करते हैं तो कर्मो की निर्जरा होती है | यही आध्यात्मिक प्रगति है |

 

एक दिन ऐसा भी आ जाता है जब एक भी विचार न तो अन्दर आता है न बाहर जाता है और शून्य की स्थिति आ जाती है | इस स्थिति को निर्विकल्प समाधि कहते हैं | अब हम ब्रह्म से साक्षात्कार करने के बहुत नजदीक हैं |

 

Dhyan kaise karein | ध्यान करने की सही विधि | Vijay Kumar Atma Jnani

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