ध्यान में सोच क्या होनी चाहिए ?


ध्यान प्रक्रिया में सोच का कोई स्थान नहीं | ध्यान प्रक्रिया तो दृष्टा की भांति जी जाती है | पहले हमें ध्यान की परिभाषा समझनी चाहिए – अपने अंदर उमड़ते हर प्रश्न को जड़ से खत्म करना होता है | जैसे जैसे हमारे अंदर कम प्रश्न आएंगे – हमें स्वयं महसूस होगा कि कर्मो की निर्जरा हो रही है | ध्यान में हमें अपने अंदर कुछ लेना नहीं है – बल्कि बंद पड़े मस्तिष्क को कर्मो की निर्जरा कर खोलना है |

 

ध्यान में उतरे हर साधक को यह बात हमेशा ध्यान रखनी चाहिए – आम इंसान का मस्तिष्क जन्म से 99 ~ 97% बंद पड़ा है | यह बंद पड़ा मस्तिष्क सिर्फ और सिर्फ सही ध्यान के द्वारा खुल सकता है | जिस दिन हमारा मस्तिष्क 100% active हो गया, हम उसी दिन महावीर, बुद्ध, आदि शंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस या महर्षि रमण की श्रेणी में आ जाएंगे | अध्यात्म के रास्ते पर प्राप्त करने योग्य और कुछ नहीं बचेगा |

 

ध्यान का सही तरीका महर्षि रमण ने बताया – self enquiry के द्वारा | शवासन की मुद्रा में जब हम अपने अंदर आते विचारों पर गौर करेंगे और उन्हें जड़ से खत्म करने की कोशिश करेंगे तो कर्मों की निर्जरा अवश्य होगी | example के तौर पर – हम मार्केट से गुजर रहें हैं और गरम गरम जलेबियां बनते देख मन ललचाता है तो साधक को क्या करना चाहिए ?

 

हमे चिंतन करना चाहिए, ऐसे कितने दिन और चलेगा, अगर इन्द्रियों पर control पाना है तो जलेबी खाने की लालसा को जड़ से उखाड़ फेंकना होगा | और अगर हम कठोर हो जाएं तो जलेबी को हमेशा के लिए तिलांजलि (goodbye) | इस तरह एक एक करके हमें सभी इन्द्रियों पर कंट्रोल स्थापित करना होगा | समय लगेगा लेकिन असंभव कुछ नहीं |

 

पांचों इंद्रियों पर कंट्रोल ध्यान का हिस्सा है, ध्यान मायने यह नहीं कि हम धार्मिक/ आध्यात्मिक पुस्तकों में फंसे रहें | अपने अंदर आते हर प्रश्न को खत्म करना, चाहे वह जलेबी के बारे में ही क्यों न हो | और चिंतन से बेहतर और कोई रास्ता नही |

 

Dhyan kaise karein | ध्यान करने की सही विधि | Vijay Kumar Atma Jnani

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