अध्यात्म में लिंगभेद की कोई जगह नही | आध्यात्मिक दृष्टि से मोक्ष तक पहुंचने के लिए नारियों को ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है | इसलिए धार्मिक पुस्तकों में इस बात का जिक्र आता है कि नारी को पुरुष योनि में आना होगा अध्यात्म के सफर को पूरा करने के लिए | ऐसा क्यों ?
नारियों में मोह पुरुषों के comparison में अत्यधिक होता है | इसी मोह से ग्रस्त स्त्री माया के चक्रव्यूह में फंसी रह जाती है |
ब्रह्मचर्य का पालन स्त्रियों को उसी भांति करना होता है जैसे पुरुषों को | अगर स्त्रियां मेरे ब्रह्मचर्य के वीडियो में दिए गए ब्रह्मचर्य मंत्र को भलीभांति समझ लें तो इसी जीवन में उन्हें गार्गी या मैत्रेई बनने से कोई नहीं रोक सकता |
पूरे भारतीय इतिहास में आज तक सिर्फ दो नारियों को केवल्यज्ञान प्राप्त हुआ – गार्गी और मैत्रेई | गार्गी उच्च दर्जे की ब्रह्मचारिणी थी स्वामी विवेकानंद की तरह | sex के topic पर प्रतिस्पर्धा में कोई पुरुष उनके सामने ठहर नहीं पाता था | Maitreyi ऋषि याज्ञवल्क्य की दूसरी पत्नी थी जो अध्यात्म में अत्यधिक रुचि लेती थीं |
अगर लक्ष्य अध्यात्म नहीं तो उचित ब्रह्मचर्य का पालन कर स्त्री किसी भी क्षेत्र में उच्चतम स्तर तक जा सकती है | कोई सीमा नहीं | लेकिन कोई आगे बढ़े तो सही | सारी बेटियां समय व्यतीत करने (गुजारने) में लगी हैं, जीने में नहीं | मद्रास से मिलने आयी थी एक बेटी बेहद परेशान, समाधान मिल कर बेहद खुश हुई |
What is Moha | मोह क्या है | Vijay Kumar Atma Jnani