भगवान (ब्रह्म) अनादि हैं और रहेंगे चिरकाल तक | कभी न खत्म होने वाला चेतन तत्व हमेशा से हर जीव का मूल भी है | जब प्रलय होती है यानि पिछला ब्रह्माण्ड खत्म होने के कगार पर है तो वह सिमट कर आधे अंगूठे के आकार में आ जाता है |
यह अस्थ अंगुष्ठ के आकार का गुच्छा जिसे हम ब्रह्म कहते हैं, अपने अंदर संजोए है ब्रह्माण्ड की सभी आत्माएं लेकिन शुद्ध रूप में | जब प्रलय होती है तो ब्रह्माण्ड की सभी आत्माएं, वह चाहे किसी भी योनि में हों (84 लाख में से), 84 लाखवी योनि में पहुंच जाती हैं |
इसमें किसी का भी हस्तक्षेप काम नहीं करेगा, ब्रह्म का भी नहीं | यहां मुझे महसूस होता है, ब्रह्म भी असहाय हो जाता है | यह ब्रह्म की अद्वितीय शक्ति जो आधे अंगूठे के आकार में समाई हुई है, खुद को अपने शुद्ध रूप में क्षण-भर के लिए भी रोक नहीं पाती और big bang के द्वारा फिर बम की तरह फटती है और नए ब्रह्माण्ड का सृजन हो जाता है |
तो आपने देखा भगवान को किसी ने नहीं बनाया | वह तो हमेशा से मौजूद हैं, भले ही फैले हुए रूप में | इसलिए कहते हैं भगवान कण कण में व्याप्त हैं | ब्रह्म यानि ब्रह्माण्ड में फैली सभी आत्माओं का झुंड अपने शुद्ध रूप में |
Who created God? भगवान को किसने बनाया | Vijay Kumar Atma Jnani