ब्रह्म जिसका आकार सिर्फ अस्थ अंगुष्ठ (आधे अंगूठे) के बराबर है, आप उससे क्या चाहते हैं ? इतना अद्वितीय ब्रह्माण्ड बना दिया, क्या यह काफी नहीं | ब्रह्म ब्रह्माण्ड रचने के बाद धर्म और कर्म के द्वारा ब्रह्माण्ड को चलने के लिए छोड़ देता है |
ब्रह्म का स्वरूप हमेशा से दृष्टा का है, इसी कारण ब्रह्म ने मनुष्यों को will power दी | हर मनुष्य स्वतंत्र है अपना जीवन जीने के लिए अपनी इच्छानुसार | भगवान की कोई दखलंदाज़ी नहीं | अगर ब्रह्म अपना कंट्रोल रखते तो मनुष्य की आधी से ज्यादा आयु प्रभु को गाली देने में निकल जाती | इंसान की यह सबसे खराब प्रवत्ति है, जो करता है उसे गाली दो | खुद कुछ करे या न करे |
ब्रह्म एक चेतना है जिसे हम देख नहीं सकते, सिर्फ महसूस कर सकते हैं | हम आत्मस्वरुप उसी का अंश हैं लेकिन खुद को पहचानते नहीं | ब्रह्म से पहचान आध्यात्मिक सफर में तब होती है जब हम कर्मों की पूर्ण निर्जरा कर एक शुद्ध आत्मा बन जाते हैं | यानि ८४ लाखवी योनि में पहुंचने में सफल हो जाते हैं, रामकृष्ण परमहंस या महर्षि रमण बन जाते हैं |
हम खुद आत्मा भव में हमेशा दृष्टा बने रहते हैं और वास्तविक जीवन में बहुत ही जरूरी होने पर छेड़छाड़ करते हैं | आत्मा normaly हर समय passive रहती है, अत्यंत जरूरी हो तभी भौतिक जीवन में interfere करती है कुछ क्षणों के लिए active होकर | अन्यथा मनुष्य कर्म और धर्म का सहारा लेकर अपना जीवन आगे बढ़ाता रहता है |
What Karma really means? कर्म का वास्तव में क्या अर्थ है? Vijay Kumar Atma Jnani