ब्रह्माण्ड में व्याप्त सभी आत्माएं अपने शुद्ध रूप में अस्थ अंगुष्ठ (आधे अंगूठे) का आकार लेती हैं | इसी आधे अंगूठे के आकार को हम ब्रह्म पुकारते हैं | ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के समय सभी आत्माएं पूरे फैलते ब्रह्माण्ड में बिखर जाती हैं | ऐसी ही कुछ आत्माओं का गुच्छा सूर्य के गर्भ में स्थित है | धरती पर जितने भी जीव हैं (मनुष्य समेत) उन सबकी आत्माएं सूर्य के गर्भ या ऊपरी सतह पर स्थित है |
आप जानते हैं ऐसा क्यों है ? आत्मा को रहने के लिए १ करोड़ degrees centigrade से ज्यादा ताप की जरूरत होती है | वह उसे सूर्य के गर्भ में ही मिलता है | इस अवस्था में हम आत्मा या ब्रह्म को साकार कैसे देख सकते हैं या सोच भी सकते हैं | दूसरे शब्दो में कहा जाए – सूर्य के गर्भ में इतना ताप आया कहां से ? वहां आत्माएं रहती हैं इसलिए |
क्या यह सच है कि आत्माओं का खुद का ताप करोड़ों degrees centigrade है ? हां, यह एक आध्यात्मिक सच है तभी आत्माएं हमारे हृदय में सशरीर विद्यमान नहीं हैं | आत्माएं सूर्य से ही रिमोट कंट्रोल द्वारा हमारे हृदय को चलाती हैं | अगर आत्माओं का ताप करोड़ों degrees centigrade है तो ब्रह्म का महाशंख degrees centigrade से भी ज्यादा होगा, अनुमान के परे |
ब्रह्माण्ड बनाने के बाद ब्रह्म अपने मूल स्वरूप में सिर्फ और सिर्फ प्रलय के समय आएंगे | उससे पहले वह खंडित होकर आत्माओं के रूप में पूरे ब्रह्माण्ड में बिखरे हुए हैं |
इतना सब होने के बाद भी जब धरती पर किसी साधक को आत्मज्ञान होता है तो ब्रह्म बगल में आकर बैठ जाते हैं और हम उन्हें भौतिक नज़रों से देख तो नहीं पाते लेकिन उनसे बात ऐसे होती है जैसे बगल में बैठे हों | उस समय साधक की जो स्थिति होती है वह शब्दों में बयान के परे है | पूरे ब्रह्मांड का रचयिता बगल में, और जैसे जैसे वह कहता जाता आप रोबोट की तरह करते जाते हैं |
कितनी ही बार कंधे पर थपकी देकर ब्रह्म ने मुझसे बात की है | ब्रह्म का कार्य करने का तरीका वह ही जाने |
Is God formless in Hinduism? भगवान साकार है या निराकार | Vijay Kumar Atma Jnani