मैंने अपना आध्यात्मिक सफर ६ १/२ वर्ष की आयु में शुरू किया | मेरी बड़ी तीव्र इच्छा थी कि भगवान कृष्ण मिल जाएं तो अपने प्रश्नों के उत्तर पूंछ लूं | एक दिन अहसास हुआ कृष्ण तो बहुत पहले आए थे और उनका ज्ञान भगवद गीता में उपलब्ध है |
जब गीता प्रेस, ऋषिकेश जाना हुआ तो देखा एक टीका में एक पेज पर काफी चित्र बने हैं जिसमें मनुष्य, पशु एवं पक्षियों को दर्शाया गया है लेकिन सभी के हृदय स्थल पर कृष्ण की फोटो बनी है | बहुत सोचा और पूछा, कुछ मालूम नहीं चला |
अंततः एक बात घर कर गई | हो न हो, हमारे हृदय में स्थित आत्मा कृष्ण ही हैं और जो गीता प्रेस ने दर्शाया बिल्कुल सही है | ५ वर्ष की आयु से हृदय से आती आवाज़ को मैं बिल्कुल साफ सुन सकता था लेकिन उस समय यह अहसास नहीं था आवाज़ किसकी थी | लेकिन अब मालूम पड़ गया था यह कृष्ण की आवाज़ है और हमारी आत्मा ही कृष्ण यानि शरीर की सारथी है |
मैं हृदय से आती आवाज़ इसलिए सुन पा रहा था क्योंकि पूर्ण सत्य के मार्ग पर था | चाहकर भी झूठ नहीं बोल पाता था | जब कृष्ण हमेशा साथ हैं तो आध्यात्मिक सफर में विघ्न कैसा ? भगवद गीता पढ़ने की बजाय सीधे कृष्ण से ही पूछ लिया करूंगा | पूरे ३१ वर्ष के आध्यात्मिक सफर में यह कृष्ण की guidance का नतीजा था कि १९९३ में ३ अगस्त को ब्रह्म ने २ १/२ घंटे का साक्षात्कार दिया |
उनके अंतर्धान होने के बाद जब उन lines को पढ़ा जो स्वयं ब्रह्म ने dictate की थी तो मालूम चला ८४ लाखवी योनि में स्थापित हो गया हूं | जब शरीर छोड़ूंगा तो ब्रह्म में हमेशा के लिए लीन हो जाऊंगा |
अर्जुन के रथ और सारथी कृष्ण का रहस्य | Vijay Kumar… the Man who Realized God in 1993 | Atma Jnani