शिव का यथार्थ क्या है और दुनिया उन्हें किस दृष्टि से देखती है | अध्यात्म की दृष्टि में तीनों ब्रह्मा, विष्णु और शिव केवल विभूतियां है | वैदिक काल में जब ब्रह्म के विराट स्वरूप को समझ पाना मुश्किल था, तो तीन धार्मिक विभूतियों को create किया गया | जो ब्रह्म का creative स्वरूप है उसे ब्रह्मा कहेंगे | जो ब्रह्माण्ड को maintain करता है उसे विष्णु और जो destructive स्वरूप है (यानि जिसके पास मृत्यु अर्थात जीवन की शक्ति है) उसे महेश (शिव) कहेंगे |
आध्यात्मिक और अद्वैदिक दृष्टि में ब्रह्म के अलावा और किसी भी चीज का अस्तित्व पूरे ब्रह्माण्ड में नहीं | इसीलिए कृष्ण भगवद गीता में कहते हैं – जो उपासना, पूजा, आदि करनी है वह directly मुझे अर्पित करो | देवी देवताओं को करोगे तो भी फल मुझे ही मिलेगा |
अब भगवान शिव को ही लें | शिव कौन हुए, जिनके गले में घातक, विषैले सर्प दिखाए जाते हैं | सर्प किस बात को चिन्हित करते हैं, कि कुण्डलिनी पूरी जागृत है | शिवजी को नीलकंठी भी कहते हैं | क्यों ? जब एक तपस्वी अपने अंदर चलते समुद्र मंथन के दौरान उत्पन्न विष को गले में धारण कर लेता है, रोक लेता है तो कंठ नीला पड़ जाता है, इसी कारण शिवजी को नीलकंठी कहा गया |
रामकृष्ण परमहंस की गले में स्थित इस विष के कारण ही मृत्यु हुई थी |
एक साधक के जीवन में यह अवस्था/स्टेज कब आती है – जब अध्यात्म के रास्ते पर चलते हुए वह तत्वज्ञानी हो जाता है और उसके अंदर विष को कंठ में रोकने की क्षमता पैदा हो जाती है | तो इस बात के मायने क्या हुए – यह दोनों बातें दर्शाती हैं कि साधक तत्वज्ञानी अर्थात शिव हो गया | और यह तत्वज्ञानी साधक जब शरीर का त्याग करेगा तो विष्णु हो जाएगा |
दोनों शिव और विष्णु ऐसी विभूतियां हैं जो एक तत्वज्ञानी को दी जाती हैं उसकी स्थिति दर्शाने के लिए | सभी महावीर, बुद्ध, आदि शंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस और महर्षि रमण पहले शिव बने और फिर विष्णु |
Samudra Manthan ki gatha | समुद्र मंथन की गाथा | Vijay Kumar Atma Jnani