महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महाकाव्य महाभारत का अंग है कृष्ण और अर्जुन उवाच | कृष्ण अर्जुन के ही सारथी क्यों बने पूरी महाभारत में किसी और के क्यों नहीं ? उसका एक ही कारण है | अर्जुन सत्य का साथ देते थे |
कृष्ण, यानि हमारी अपनी आत्मा की हृदय से आती आवाज़ को सिर्फ वही सुन सकता है जो सत्य के मार्ग पर चले | सारे कौरवों में सत्य के मार्ग पर चलने वाला एक भी नहीं था, न भीष्म पितामह और न ही गुरु द्रोणाचार्य | पांडवों में भी धर्मराज युधिष्ठिर धार्मिक होते हुए भी कभी कभी असत्य का साथ दे देते थे |
तो पूरे महाभारत महाकाव्य का आध्यात्मिक साधकों के लिए क्या संदेश है – अगर इसी जन्म में ज्ञान पाकर मोक्ष तक पहुंचना चाहते हो तो अर्जुन की तरह सत्यवादी बनना पड़ेगा | तभी हम हृदय से आती कृष्ण की बुलंद आवाज़ सुन सकेंगे और 700 श्लोकों का मर्म स्वतः ही समझ आ जाएगा |
ध्यान रहे कृष्ण की आवाज़, कृष्ण का साथ तभी मिलेगा जब हम पूर्णतया सत्य का साथ देंगे, अन्यथा हमें कुछ सुनाई नहीं देगा !
हृदय से आती कृष्ण की आवाज़ मैं 5 वर्ष की आयु से साफ सुनता आया हूं | आज 63 वर्ष हो गए, मेरे जीवन का हर पल कृष्ण ही नियंत्रित करते आए हैं आज तक | इसी कारण 37 वर्ष की आयु में मुझे ब्रह्म का 2 1/2 घंटे का साक्षात्कार संभव हुआ |
Listen to Inner Voice coming from within our Heart | हृदय से आती आवाज को सुनना सीखें | Vijay Kumar