आज के समय में इंसान आपसी होड़ में फंसा है | हर बिजनेसमैन मुकेश अंबानी बनना चाहता है | एक ऐसा बिजनेसमैन जिसकी companies का काफी समय पहले turnover 700 करोड़ था मेरा अनुयाई हो गया, अध्यात्म पर बैठकर 2~2 घंटे चर्चा करता |
मैं उस समय बिजनेस में था, अपनी company का managing director | कौतूहलवश मैंने गुप्ताजी से पूछा, आप लाइफ में settled हैं, छोटा सा परिवार है, क्या आप की भी कोई ख्वाहिश है | काफी देर मुझे घूरते रहे और फिर बोले, मैं भी धीरूभाई अंबानी बनना चाहता हूं | उस समय अंबानी ग्रुप का टर्नओवर 70,000 करोड़ था |
मुझे आश्चर्य तो हुआ, लेकिन यही जग की रीत है, चादर से बाहर पैर पसारने की कोशिश – 700 से 70,000 करोड़ | अध्यात्म कहता है जितना चाहिए उससे भी कम में गुजारे की कोशिश करें | मृत्यु के बाद जो साथ जाएगा वह है कर्मफल, इसके अलावा कुछ भी नहीं | तो क्या इंसान को ज्यादातर समय पुण्यकर्मों में व्यतीत नहीं करना चाहिए ?
इतनी छोटी सी बात समझने के लिए पढ़ालिखा होना जरूरी तो नहीं ?
What was the role of Arjuna in Mahabharata? आज का अर्जुन कौन आध्यात्मिक परिवेश में | Vijay Kumar