काशी में जाकर शरीर त्यागने से अगर मनुष्य जीवन की आखिरी दहलीज पर पहुंच जाता यानी मोक्ष प्राप्त कर लेता तो इस धरती पर क्या यह संभव है कोई भी इंसान और कहीं क्यों मरता | अध्यात्म की दुनिया अगर मगर के परे है |
धार्मिक क्रियाओं में संलग्न किसी भी इंसान को शुरू से आज तक क्या मोक्ष प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ? नहीं | आज के समय में धर्म को ही लोग religion कहने लगे हैं | किसी भी धार्मिक क्रिया के द्वारा इंसान की मृत्यु के समय मुक्ति संभव नहीं | चाहे हम यज्ञ करें, रोज़ मंदिर जाते हो, भजन कीर्तन में संलग्न हों अथवा सत्संग करते हों, किसी भी तरह से मुक्ति संभव नहीं |
आत्मा बार बार शरीर क्यों धारण करती है ? आत्मा को अपने अंदर sandwiched अशुद्धियां हटाने के लिए शरीर की आवश्यकता होती है | तभी कर्मों की निर्जरा संभव है | धार्मिक क्रियाओं में उलझकर हम कर्मों की निर्जरा नहीं करते बल्कि उल्टे और ज्यादा कर्मबंधन बना लेते हैं | ऐसा करने से हमारा आत्मस्वरुप, धरती पर जो stay है, वह घटने की बजाए बढ़ जाता है |
बिना कर्मों की निर्जरा किए हम कहीं भी जाएं, काशी, हरिद्वार, नासिक, उज्जैन इत्यादि हमें कभी कुछ भी हासिल नहीं होगा | उल्टे अगर हम ४७ के karmic index पर स्थित हैं तो ४६ पर आ जाएंगे | ऊपर उठने की बजाए नीचे गिर जाएंगे, १०० पर साधक रामकृष्ण परमहंस बन जाता है |
अध्यात्म में प्रगति करने के लिए हमें कर्मों की पूर्ण निर्जरा तो करनी ही होगी | तभी हम आत्मस्वरुप शुद्ध अवस्था में आ पाएंगे और एक शुद्ध आत्मा बन मोक्ष के द्वार तक पहुंच जाएंगे | कर्मो की निर्जरा सिर्फ और सिर्फ चिंतन के रास्ते से ध्यान में उतरने से होती है | अपने अंदर आते, उमड़ते सभी प्रश्न जब जड़ से खत्म हो जाएंगे, हम तुरंत निर्विकल्प समाधि की अवस्था में आ जाएंगे |
What is Moksha in simple terms? मोक्ष क्या है? Vijay Kumar Atma Jnani