पिता और पुत्र में किसे श्रेष्ठ कहेंगे ? पिता जो पहले आया या पुत्र जो बाद में आया ?
वेदों की उत्पत्ति उन ऋषियों द्वारा की गई जो खुद तत्वज्ञानी हो चुके थे | उन्होंने श्रुतिज्ञान के द्वारा ब्रह्म का आह्वान किया तो वेदों का ज्ञान ऊपर से उतरा | वेदों में निहित ज्ञान सीधे ब्रह्म की वाणी है, बिना किसी शंका के | ब्रह्म ने वेदों का ज्ञान धरती पर इसलिए प्रेषित किया कि समय समय पर साधक वेदों में निहित ज्ञान को आत्मसात् करके ब्रह्म तक पहुंच सके, ब्रह्म का साक्षात्कार कर सके |
लेकिन समय गुजरा | आम इंसान तो क्या, पहुंचे हुए scholars भी वेदों में निहित ज्ञान को आत्मसात् करने में कठिनाई महसूस करने लगे | तो महर्षि वेदव्यास ने महाभारत महाकाव्य की रचना की और उसमे वह सब ज्ञान जो जरूरी था, कृष्ण और अर्जुन उवाच के रूप में जनता के सामने पेश किया | फिर क्या था, भगवद गीता का ज्ञान सभी द्वारा पढ़ा जाने लगा |
आज के समय में हमें वेदों में निहित ज्ञान की आवश्यकता नहीं, क्योंकि आज यज्ञ इत्यादि करने (धार्मिक अनुष्ठानों) की आवश्यकता नहीं | साधक को ब्रह्म तक पहुंचने के लिए जितने ज्ञान कि जरूरत है वह भगवद गीता में उपलब्ध है | भारतीय शास्त्रों में बात कभी श्रेष्ठता की नहीं होती | क्या चाहिए और कहां मिलेगा – बस यह देखना होता है |
What spiritual books should i read | कौनसी आध्यात्मिक पुस्तकें पढ़े | Vijay Kumar Atma Jnani