श्रद्धा या कहें आस्था एक दिन में नहीं आती/ बनती | छोटे से बच्चे का मां के ऊपर विश्वास से कहीं ऊपर आस्था होती है | उसे पूर्ण विश्वास होता है कुछ भी हो जाए, कैसे भी आपदा आए, मां उसे बचा लेगी | यही एक सच्चे साधक का ब्रह्म में पूर्ण विश्वास (आस्था) होता है कि वे उसका साथ हमेशा देंगे, बीच मझधार में कभी नहीं छोड़ेंगे |
विश्वास temporary होता है, कभी भी टूट सकता है | मूलतः धार्मिक कर्मकांडो, अनुष्ठानों में लगे लोग भगवान में विश्वास रखते हैं | जरा सा उनकी उम्मीद से हटकर कुछ हुआ, हो जाते हैं भगवान से नाराज़ | मुंह से भगवान के लिए अपशब्द निकलने लगते हैं – मेरा तो भगवान से विश्वास ही उठ गया | इतने दिनों से मंदिर जाता हूं, दान दक्षिणा भी देता हूं – क्या फायदा हुआ ?
सच्चे आध्यात्मिक साधक का भगवान के ऊपर विश्वास पूर्ण होता है | मौत सामने खड़ी हो – ब्रह्म में आस्था, श्रद्धा टूटेगी नहीं, चाहे कुछ भी हो जाए | श्रद्धा नफे नुकसान से, सुख दुख इत्यादि से connected नहीं होती | वह हमेशा इकतरफा, unconditional होती है | अगर साधक की ब्रह्म में पूर्ण आस्था नहीं तो अध्यात्म में कभी नहीं उतरना चाहिए |
कोई भी साधक सत्य के मार्ग पर तभी चल सकता है जब ब्रह्म में पूर्ण आस्था हो | 5 वर्ष की आयु से मेरी ब्रह्म में श्रद्धा 100% है | शायद पिछले जन्म में कुछ किया होगा जो इतनी छोटी उम्र में पूर्ण आस्था हो गई |
Power of Absolute Truth | अध्यात्म में सत्य का महत्व | Vijay Kumar Atma Jnani