धरती पर आत्मा 84 लाख योनियों के चक्रव्यूह से गुजरती है | 73 लाख योनियां का लंबा सफर करके पहली बार मनुष्य का रूप धारण करती है | मनुष्य रूप में 11 लाख योनियां होती हैं | पहली योनि से आखिरी योनि तक, आत्मा का एक ही लक्ष्य है – जल्द से जल्द अपने शुद्ध रूप को वापस प्राप्त कर लेना | जिस दिन मनुष्य कर्मों की पूर्ण निर्जरा कर लेगा आत्मा अपने शुद्ध रूप में वापस आ जाएगी |
एक शुद्ध आत्मा का मनुष्य शरीर धारण करने में फिर कोई प्रयोजन नहीं रह जाता | तो मनुष्य ऐसा क्या करे कि 11 लाख योनियों का सफर तीव्रता से काट जाए ? महर्षि वेदव्यास ने देखा वेदों में निहित ज्ञान आम जनता तक नहीं पहुंच रहा, तो अच्छी तरह सोच समझकर महाभारत महाकाव्य की रचना की | उसमे कृष्ण, पांडव और कौरव मुख्य पात्र बनाए | पांडवो का अधिनायक बनाया अर्जुन को, यानि एक आम साधक !
फिर उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता ज्ञान कृष्ण के माध्यम से अर्जुन को प्रेषित किया | फिर क्या था, भगवदगीता ज्ञान से ओतप्रोत अर्जुन अपनों से युद्ध के लिए तैयार हो गया | जब अर्जुन ने अपनों के साथ युद्ध करने का निर्णय लिया, यानि मोह पर पूर्ण विजय प्राप्त कर ली |
एक साधक के तत्वज्ञानी बनने में अपनों का मोह आखिरी कड़ी है, और जब हम उस पर विजय प्राप्त कर लेते हैं तो जन्म और मृत्यु के बंधन को जल्दी काटकर हमेशा के लिए मोक्ष पाने के अधिकारी हो जाते हैं |
कोई भी इंसान ब्राह्म शक्तियों से तो लड़ सकता है लेकिन जब उन से लडने की बारी आती है जिनके साथ बचपन गुजारा, जो हमारे गुरु हैं या फिर नाना तो असंभव दिखता है | बस इसी क्षण महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित भगवदगीता ज्ञान काम आता है | यही गीतासार है और यही है भगवदगीता की प्रमुख शिक्षा !
What was the role of Arjuna in Mahabharata? आज का अर्जुन कौन आध्यात्मिक परिवेश में | Vijay Kumar