भगवद्गीता में भगवान का यह कहने का अर्थ क्या है कि आरम्भ में समस्त प्राणी अव्यक्त हैं बीच में व्यक्त रहते है और मरने के बाद अव्यक्त हो जाते हैं ?


भगवद गीता अनुसार हम मूलतः आत्मा हैं जिसने कर्म करने के लिए शरीर धारण किया है | तो व्यक्त होने से पूर्व आत्मा अव्यक्त ही तो थी | शरीर धारण करते ही वह व्यक्त हो जाती है और जिस दिन इंसान अध्यात्म की राह पर चलकर मुक्ति पा लेता है, वह फिर एक शुद्ध आत्मा बन अव्यक्त रूप धारण कर ब्रह्मलीन हो जाती है |

 

सारांश में – आत्मा शुद्ध रूप में ब्रह्म का अंश है – ब्रह्मांडीय सफर में अशुद्धियां ग्रहण कर लेती है – 84 लाख योनियों के सफर से गुजर कर्मों की निर्जरा कर फिर अपने शुद्ध रूप में आ जाती है – और अंततः फिर ब्रह्मलीन हो जाती है |

 

Difference between Atman and Brahman | आत्मा परमात्मा में भेद | Vijay Kumar Atma Jnani

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