अगर हम इस जीवन में अध्यात्म के रास्ते पर आगे बढ़ना चाहते हैं तो हमें सत्य का मार्ग लेना होगा | झूठ का सहारा लेकर हम आध्यात्मिक उन्नति की उम्मीद नहीं रख सकते | आखिरी तत्वज्ञानी इस धरती पर महर्षि रमण थे जो १९५० में अपना शरीर त्याग गए | उसके बाद कोई तत्वज्ञानी धरती पर मौजूद नहीं | क्यों ?
इसका कारण एक ही है – रोजीरोटी कमाने के लिए रोजमर्रा की जिन्दगी में झूठ का सहारा लेना |
जब तक हम अपने अंदर से झूठ की आखिरी परत उखाड़ नहीं फेकेंगे, हमारी आध्यात्मिक उन्नति नहीं होगी | मुझे कितनी email आती हैं कि भगवद गीता बहुत बार पढ़ी लेकिन समझ कुछ नहीं आया | झूठ के पायदान पर खड़े होकर हम भगवान को पाने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं ? असत्य का मार्ग आम साधक के जीवन में सबसे बड़ा राह का रोड़ा है |
अगर हम पूर्ण सत्यवादी हो जाएं तो भगवद गीता पढ़ने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी | हमें यह बात अच्छी तरह समझ में आ जाएगी कि सत्य के मार्ग पर चलकर हम हृदय से आती अपनी आत्मा की आवाज भलीभांति सुन सकेंगे | शनै शनै हमें इस तथ्य का अहसास हो जाएगा कि हृदय में बैठी हमारी आत्मा ही महाभारत में दर्शाएं कृष्ण हैं |
यह बात आप गीताप्रेस की भगवद गीता की टीकाओं में देख सकते हैं जहां उन्होंने चित्रों के माध्यम से यह दर्शाया है कि हर जीव के हृदय स्थल पर कृष्ण की तस्वीर है और यह बात सोलह आने सच है | हृदय में विराजमान हमारी आत्मा ही सारथी स्वरूप भगवान कृष्ण हैं |
५ वर्ष की आयु से हृदय से आती आवाज़ को मैं बहुत ही clear सुन सकता था | उस समय मुझे यह तो ज्ञात नहीं था यह आवाज़ किसकी है लेकिन उसे भगवान की आवाज़ समझ कर मैं आगे बढ़ता गया | भगवद गीता के ७०० श्लोकों का सारांश मुझे घर बैठे मिलता चला गया | मुझे कभी किताबी ज्ञान की जरूरत महसूस ही नहीं हुई |
१९९३ में ३ अगस्त को ३७ वर्ष की आयु में ब्रह्म से २ १/२ घंटे का साक्षात्कार होने से पहले मैंने भगवद गीता एक बार भी नहीं पढ़ी लेकिन आत्मसाक्षात्कार के बाद मै भगवद गीता के ७०० श्लोकों पर ३६५ दिन का nonstop प्रवचन कर सकता हूं | ब्रह्माण्ड में निहित सम्पूर्ण ज्ञान स्वतः ही अंदर समा गया |
मैं यहां फिर कहना चाहूंगा, बिना सच (पूर्ण सत्य) को अपनाए हम अध्यात्म में उतर ही नहीं सकते | और रही गीता को पढ़ने की बात, सत्य अपनाते ही सम्पूर्ण गीता स्वयं समझ आने लगेगी |
Power of Absolute Truth | अध्यात्म में सत्य का महत्व | Vijay Kumar Atma Jnani