अगर आप सत्य (सिर्फ सच नहीं) के रास्ते पर चलने के लिए सक्षम हैं पूर्णतया 100%, तो आपको श्रीमद्भगवद्गीता के 700 श्लोकों को एक बार भी पढ़ने या समझने की जरूरत नहीं | मैंने 5 वर्ष की आयु में आध्यात्मिक सफर शुरू किया और 37 वर्ष की आयु में ब्रह्म से 2 1/2 घंटे का साक्षात्कार | इस बीच एक बार भी भगवद गीता खोल कर नहीं देखी | साक्षात्कार के बाद मैं भगवद गीता पर 365 दिन nonstop प्रवचन कर सकता हूं | कैसे ?
मैंने 5 वर्ष की आयु से ब्रह्म से मिलने तक एक भी झूठ नहीं बोला | मेरी सामर्थ में नहीं था | सच बोलने के कारण 5 वर्ष की आयु से हृदय से आती सारथी कृष्ण (हमारी अपनी aatma) की आवाज़ बिल्कुल स्पष्ट सुन सकता था |
जैसे ही चिंतन के माध्यम से ध्यान में उतरता (अक्सर शवासन की मुद्रा में), तो जहां जरूरत होती कृष्ण मदद कर देते | अपने अंदर आते प्रश्न कम होते चले गए और कर्मों की निर्जरा शुरू हो गई | एक दिन आया जब मैं शून्य (निर्विकल्प समाधि) में स्थित हो गया |
जब ब्रह्म का साक्षात्कार हुआ, उसके बाद मैं उस स्थल पर पहुंच गया जहां से पूरे ब्रह्माण्ड का ज्ञान उत्पन्न होता है | बस फिर क्या था – भगवद गीता ज्ञान, उपनिषदों में निहित ज्ञान ABCD हो गया | सत्य अध्यात्म के रास्ते की सबसे बड़ी कुंजी है | कोशिश करके देखें | समय लगेगा, जो भगवान ने 11 लाख मनुष्य योनियों में देना निहित किया है अगर वह एक जन्म में चाहिए तो धैर्य से काम लेना होगा |
Power of Absolute Truth | अध्यात्म में सत्य का महत्व | Vijay Kumar Atma Jnani