सत्संग वो नहीं जो लोग आजकल समझते और करते हैं | सत्संग हमेशा एकांत में 4 से 6 लोगों के बीच होता है | सत्संग यानि आध्यात्मिक विचारों का आदान प्रदान | अपने अंदर उमड़ते प्रश्नों का उत्तर ढूंढ़ना ही सत्संग है | सत्संग वो नहीं जहां हजारों लाखों की भीड़ और उत्तर देने वाला कोई नहीं | आजकल के सत्संग में बोलने की आजादी सिर्फ गुरुओं को है | सत्संग में आए लोगों को प्रश्न पूछने की आज़ादी नहीं |
सोच कर देखिए ! अगर कोई ऐसा पहुंचा हुआ साधक हो जो गुरु/ वक्ता से ऐसा प्रश्न पूछ ले जिसका उत्तर उसे नहीं मालूम तो लाखों लोगों के बीच नाक कट जाएगी | इस एक तरफा सत्संग के क्या मायने ? हमारे अंदर उमड़ते प्रश्नों को उनके उत्तर न मिले तो सत्संग में जाने का फायदा ? जितने भी हजारों लाखों साधक सत्य की खोज में सत्संग में आए हैं वे विमूढ़ से बैठे बस सुनते रहते हैं |
जब तक हमारे अंदर उमड़ते प्रश्नों को समाधान नहीं मिलेगा हमें कोई लाभ तो नहीं होगा | सत्संग खत्म होने पर वही स्थिति होगी जो सत्संग में आने से पहले थी | सच्चा गुरु कभी शंका समाधान भीड़ में नहीं करता और करता भी है तो सभी साधकों के प्रश्नों के उत्तर देने में सक्षम | आज तक जीवन में मैंने जहां भी प्रवचन किए, सब extempore और हर साधक को कोई भी प्रश्न पूछने की आज़ादी | सत्संग का मतलब है प्रश्न जड़ से खत्म हो जाना |
मेरे साथ एक विचित्र बात रही – हर प्रवचन में मैं सभा में बैठे लोगों के मस्तिष्क में उमड़ते प्रश्न पढ़ लेता था | कभी किसी को कुछ पूछने की जरूरत ही नहीं हुई | एक बार पूना में 2 घंटे बोलने के बाद लगभग 65 वर्ष का एक साधक जोर जोर से रोने लगा | प्रवचन रोककर जब पूछा तो कहने लगा ये तो खुशी के आंसू है |
उसने आगे बताया वह अब सरकारी नौकरी से रिटायर हो चुका है | जब छोटा था उसके मन में बहुत प्रश्न थे – हम कौन हैं, कहां से आए हैं, कहां जाना है इत्यादि – लंबी लंबी प्रश्नों की दो लिस्ट जेब से निकाल कर दिखाई | आगे कहने लगा मैंने लिस्ट में से एक भी प्रश्न आपके आगे नहीं रखा लेकिन आपने मेरे अंदर के हर प्रश्न को जैसे पढ़ लिया और दो घंटे में मेरे हर प्रश्न का उत्तर मुझे मिल गया | बस उसी की खुशी के आंसू हैं |
उसने यह भी बताया कि सबसे पहले मां से उन प्रश्नों का उत्तर पूछा, उत्तर न मिलने पर अध्यापक, फिर हेडमास्टर और नौकरी में लगभग सभी साथियों से पूछा | जीवन के 65 वर्ष गुजर गए और अखबार में आज आपके प्रवचन के बारे में पढ़ा तो इस उम्मीद से चला आया कि शायद कुछ उद्धार हो जाए और कुछ प्रश्नों के उत्तर मिल जाएं | और यहां तो एक भी प्रश्न बाकी नहीं |
आध्यात्मिक जीवन का सत्य यही है | मैं 5 वर्ष की आयु से extempore बोलता आया हूं | मुझे याद है 68 साल के जीवन में दो साधकों के प्रश्नों के उत्तर उसी समय नहीं दे पाया (पूना और रुड़की) में अन्यथा कोशिश करता हूं प्रश्न वहीं घुल जाएं हमेशा के लिए | पूना में चाचाजी ने technical प्रश्न पूछे थे जिनका आध्यात्मिक सफर से direct connect नहीं था लेकिन रुड़की में जिस नारी ने प्रश्न पूछा था वह बेहद गूढ़ था | दोबारा मुलाक़ात ही नहीं हुई |
What is the real meaning of spirituality? अध्यात्म का वास्तविक अर्थ क्या है ? Vijay Kumar Atma Jnani