सत्संग शब्द सिर्फ और सिर्फ भारतीय शास्त्रों तक निहित है | पाश्चात्य जगत या अन्य धर्मों में सत्संग का कोई महत्व नहीं | भारतीय दर्शन अनुसार सत्संग आध्यात्मिक जगत की ऐसी प्रणाली है जिसके अधीन होकर कुछ साधक आपस में बैठकर अध्यात्म के विभिन्न पहलुओं पर रोशनी डालते हैं और विषय के छिपे मर्म तक पहुंचने की कोशिश करते हैं |
एकांत में साधक चिंतन मनन कभी भी, कहीं पर भी कर सकता है लेकिन अगर आध्यात्मिक उन्नति तेज करनी है तो सत्संग की कोशिश करनी चाहिए | ध्यान रहे सत्संग अपनी जैसी प्रवत्ति वाले लोगो के साथ ही किया जा सकता है, अज्ञानियों के साथ कभी नहीं | सत्संग में कभी कटाक्ष वाला भाव नहीं होता | या तो हम सही हैं अन्यथा गलत |
जिस साधक का तर्क सत्य पर आधारित है उसका उत्तर सभी को स्वीकार्य होता है | और जब सारे तर्क खत्म हो जाएं और सिर्फ एक ही उत्तर रह जाए तो वह ही मर्म है, शाश्वत तत्व है | बस यही फायदा है सत्संग करने का | सही तरह से सत्संग किया जाए तो आध्यात्मिक प्रगति तीव्रता से होती है | भौतिक जिंदगी में जब भी संभव हो सत्संग जरूर करते रहना चाहिए |
हां एक बात का ध्यान अवश्य रहे, अध्यात्म का मूल सत्य है | अगर हम सत्य पर पूर्णतया स्थापित हैं तो फिर हमें आध्यात्मिक प्रगति करने से कोई भी रोक नहीं सकता |
Power of Absolute Truth | अध्यात्म में सत्य का महत्व | Vijay Kumar Atma Jnani