सच्चा सत्संग क्या होता है कैसे होता है ?


बचपन में जब सत्संग करने की इच्छा होती तो कोशिश करता मेरे जैसा सोचने वालों का साथ मिल जाए तो बैठ कर आध्यात्मिक चर्चा कर सकूं | कोई नहीं मिला | मैं पूर्ण सत्य के मार्ग पर चलता था और औरों से भी यही उम्मीद रखता था |

 

सत्संग का मतलब तो यही है – सत्य की राह पर चलने वालों के साथ आध्यात्मिक चर्चा करना और किसी ठोस निष्कर्ष पर पहुंचना | यह प्रथा गुरुकुल में शुरू की गई थी जिससे शिष्य आपस में शास्त्रार्थ कर अन्दर छिपे तत्व तक पहुंच सकें |

 

अगर शिष्य किसी गंभीर विषय पर अटक जाते थे तो आचार्य की जिम्मेदारी होती थी उनकी शंका दूर करे | अगर विषय ज्यादा गंभीर होता था तो प्रधानाचार्य भी सत्संग का हिस्सा होते थे लेकिन बोलते तभी थे जब जरूरत हो |

 

इस तरह के सतसंगों के माध्यम से सभी शिष्यों में चिंतन करने की सामर्थ पैदा होती थी और सत्संग आगे बढ़ता था | अंततः शिष्य छिपे तत्व तक पहुंच ही जाते थे |

 

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