सत्संग कैसे मन का मैला दूर करता है ?


हम मनुष्य आखिर कौन हैं ? हमारा अपना स्वतंत्र अस्तित्व तो है नहीं ! जब तक आत्मा ने शरीर धारण कर रखा है और दिल धड़क रहा है तो हम जीवित हैं लेकिन जिस दिन आत्मा ने शरीर त्याग दिया – खेल खत्म – हमारा अस्तित्व हमेशा हमेशा के लिए zero हो जाएगा | आत्मा ने अपने अंदर व्याप्त अशुद्धियों से निवृत्त होने के लिए मनुष्य शरीर धारण किया है | तो व्याधियां तो मनुष्य में जन्म से होती हैं |

 

इन्हीं अशुद्धियों को दूर करने के लिए मनुष्य अध्यात्म का सहारा लेता है | मन तो हमेशा सत्य से दूर ले जाता है | मन तो इन्द्रियों पर टिका है | अगर हम इन्द्रियों को साध लें तो मन स्वतः ही सध जाएगा | मन पर हमेशा के लिए कंट्रोल पाना ही अध्यात्म का उद्देश्य है | सत्संग करने हुए हम सत्य की राह पर चलते हैं | जैसे जैसे हमारे अंदर सत्य बढ़ता है तो मन की अशुद्धियां उसी मात्रा में घटती हैं | सत्संग के द्वारा हम मन में ठहरे हुए प्रश्नों के उत्तर ढूंढ़ते चलते हैं |

 

मनुष्य का मन हमेशा भोग वस्तुओं की तरफ भागता है | जितने भी गलत विचार हमारे मन में आते हैं वे हमें सत्य से दूर ले जाते हैं | मन भौतिक जगत से जुड़ा है – उसे अध्यात्म की दुनिया से कुछ लेना देना नहीं | जब साधक ब्रह्म की खोज में आध्यात्मिक जगत से जुड़ता है तो उसे ज्ञात होता है – ब्रह्म तक पहुंचने के लिए पहले पांचों इन्द्रियों और फिर मन पर पूर्ण control स्थापित करना होगा |

 

सत्संग में जब आध्यात्मिक चर्चा करेंगे तो मन तो आहत होगा ही | जैसे जैसे हम सत्संग में आगे बढ़ते हैं हम पाएंगे कि मन हल्का हो रहा है | सत्य के कारण और अशुद्धियां कम होने से हम खुद के अंदर व्यापक change देख सकते हैं | हमें अंदर से खुद अहसास होगा कि हम दिन पर दिन pure होते जा रहे हैं | ऐसे इंसान को भीड़ में आसानी से पहचाना जा सकता है – उसके माथे पर उभरे तेज के कारण |

 

तो सत्य के मार्ग पर चलें, सत्संग से जुड़ें और अंततः मन पर पूर्ण control स्थापित कर लें |

 

Power of Absolute Truth | अध्यात्म में सत्य का महत्व | Vijay Kumar Atma Jnani

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