जाने से नहीं, सत्संग में बैठने से अत्यंत आध्यात्मिक उन्नति संभव है | सत्संग यानि 2 से 6 लोगों के बीच विचारों का आदान प्रदान और अध्यात्म के विभिन्न पहलुओं पर गहन चर्चा, चिंतन एवं मंथन | सभी को मिलकर एक particular विषय के मर्म तक पहुंचना होता है – जितना जल्दी पहुंच जाएं | यह संभव हो पाता है जब सभी पात्र सत्य का पालन करते हुए तत्व को ढूंढते हैं |
सत्संग देखने सुनने में आसान लगता है लेकिन इतना आसान भी नहीं | आजकल बात सभी अध्यात्म की करते हैं लेकिन अध्यात्म की राह पर चलने वाला करोड़ों में एक भी नहीं | अगर ऐसा नहीं तो स्वामी विवेकानंद की स्थिति में पहुंचने में सिर्फ और सिर्फ 12 साल लगते हैं – वही 12 साल की तपस्या जो महावीर ने टीले के ऊपर खड़े होकर की और सिद्धार्थ गौतम ने बोधि वृक्ष के नीचे |
यह बात सोलह आने सच है – अगर कोई साधक स्वामी विवेकानंद बनना चाहता है तो आध्यात्मिक सफर में लगते 12 वर्ष ही हैं | और उसके कुछ वर्ष बाद साधक अंततः रामकृष्ण परमहंस बन ही जाता है | मैंने आध्यात्मिक सफर 5 वर्ष की आयु में शुरू किया और अंततः 24 वर्ष की आयु में 12 वर्ष की अखंड तपस्या ब्रह्मचर्य और ध्यान की शुरू की |
37 वर्ष की आयु में 3 अगस्त की सुबह 1.45 am पर ब्रह्म ने दर्शन दिए और 2 1/2 घंटा साथ रहे | उनके जाने के बाद मुझे अहसास हुआ मैं 84 लाखवी योनि में स्थापित हो चुका हूं और यह जीवन मेरा आखिरी निवास है धरती पर | शुद्ध आत्मा बनने में अंततः मुझे लगे 12 वर्ष ही – लेकिन वो 12 वर्ष की अखंड तपस्या थी बेहद कठिन – ब्रह्म तो मिल गए लेकिन अन्य सब कुछ बिखर गया |
सत्य की राह पर चलना भी टेढ़ी खीर है लेकिन और कोई चारा भी नहीं |
12 years Tapasya | 12 साल की घोर तपस्या का सच | Vijay Kumar Atma Jnani