सही रास्ता क्या है – बच्चे संभालें या आत्म कल्याण के लिए सत्संग में जाएँ ?


जीवन के हर पल इंसान दो जिंदगी जीता है | एक अपनी मैं पर आधारित भौतिक जिंदगी और बच्चों का पालन पोषण उसी का हिस्सा है | दूसरी अंदरूनी जिंदगी जो उसे ब्रह्म की ओर खींचती है और इस राह पर चलने के लिए अध्यात्म का सहारा लेना पड़ता है | सत्संग इसी आध्यात्मिक जीवन का part है | मैंने 5 वर्ष की आयु से दोनों जीवन बखूबी जिए और 37 वर्ष की आयु में अंततः ब्रह्म से 2 1/2 घंटे का साक्षात्कार भी हो गया |

 

मैं पहली प्राथमिकता भौतिक जीवन को देता था – आखिर रोटिरोजी की जिम्मेदारी भी हमारी होती है | दूसरी बात – मां का एक अपूर्व सम्मान – 5 वर्ष की आयु में उन्होंने मेरी जान जो बचाई थी| इसी कारण मां की एक भी बात मैं टालता नहीं था | मां या दादी के कहे सारे काम निबटा कर ही मैं अध्यात्म की सोचता था | आज के समय में problem क्या है – कोई चिंतन करना ही नहीं चाहता ? अगर चिंतन नहीं करेंगे तो सच और झूठ में फ़र्क कैसे करेंगे ?

 

मैंने 6 1/2 वर्ष की आयु में ही सत्संग के सही मायने जान लिए थे | मैं किसी भी ऐसे विद्वान की फिराक में रहता जो मुझे कुछ भी आध्यात्मिक बता सके – उसके साथ में खुलकर सत्संग करता था | तब तक जब तक वह इंसान मुझ से पीछा छुड़ा कर भाग न जाए | अपने दादा, दादी, नाना, मास्टरजी, हेड मास्टरजी और समाज के दिग्गज जो अध्यात्म में थोड़ी भी रुचि रखते थे – सबको मैंने तब तक पूछा जब तक वो निरुत्तर नहीं हो गए |

 

दादाजी ने तो 7 वर्ष की आयु में ही हार मान ली | लेकिन 8 1/2 वर्ष की आयु में जब ब्रह्म ने स्वयं गुरु बनना स्वीकार कर लिया फिर मुझे और क्या चाहिए था | क्या समय था – 5 से 7 वर्ष की आयु तक मैंने गांव और शहर के किसी भी गणमान्य व्यक्ति को नहीं छोड़ा जिससे मुझे कुछ भी ज्ञान मिलने की उम्मीद थी |

 

6 1/2 वर्ष की आयु में मैं गांव के मंदिर की चौपाल पर स्वामी विवेकानंद का 45 मिनट का 1893 में Chicago में दिया लेक्चर verbatim इंग्लिश में सबको सुनाता था, बिना एक भी गलती किए | स्वतः ही मुंह से निकलता था | इंग्लिश की ABCD की जानकारी नहीं लेकिन लेक्चर व्याख्यान बिना त्रुटि के |

 

हर साधक को 1 या 2 लोगों के साथ बैठकर सत्संग करना चाहिए – वह भी तब जब वक़्त मिले | सत्संग सुनने की चीज नहीं, यह तो गहन चिंतन का विषय है | कुछ आध्यात्मिक साथी ढूंढने चाहिए और उनके साथ सत्संग करना चाहिए | ध्यान रहे सत्संग तभी कामयाब होगा जब हम सत्य की राह पर चलने का सामर्थ रखते हों |

 

Power of Absolute Truth | अध्यात्म में सत्य का महत्व | Vijay Kumar Atma Jnani

 

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