क्या स्वामी विवेकानंद एक कर्मयोगी थे ?


स्वामी विवेकानन्द एक उच्च कोटि के कर्मयोगी थे |कर्मयोगी यानि कर्म तो करते थे लेकिन निष्काम भावना से | आम साधक कर्मयोगी नहीं होता | जब साधक निष्काम कर्मयोग की क्रिया को समझ हर कार्य निष्काम भावना से करने लगता है तो वह सफल कर्मयोगी बन जाता है | निष्काम भावना यानि कर्म तो करेंगे लेकिन उसके फल के पीछे नहीं भागेंगे |

 

भौतिक जगत में आम इंसान कार्य करता ही तब है जब फल सामने हो – तो बिना फल की इच्छा के कर्म करें कैसे ? सच्चा साधक आध्यात्मिक जगत की एक बात बहुत अच्छी तरह से जानता है – हम एक आत्मा हैं न कि एक शरीर | और यह शरीर भी आत्मा ने धारण किया है स्वयं को शुद्ध करने के लिए | तो मानव के किए कर्म का फल आत्मा का हुआ न कि शरीर का | शरीर तो बस आत्मा के लिए एक माध्यम है |

 

अध्यात्म की राह का साधक इस शाश्वत सत्य को भलीभांति जानता है और इसी लिए कर्म में निष्काम भावना से ही जुड़ता है | जब तक मनुष्य कर्मफल के पीछे भागता रहेगा उसकी आध्यात्मिक उन्नति नहीं होगी | हर कर्मयोगी को हर कर्म हमेशा निष्काम भावना से ही करना होगा | और स्वामी विवेकानन्द कर्म करते हुए भी कर्मफल के पीछे कभी नहीं भागे | कर्मयोग के रास्ते पर स्वामी विवेकानन्द ने एक गलती जरूर की |

 

1893 में विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद बड़ी उम्मीद से गए थे | यह कर्मफल इच्छा नहीं थी तो और क्या था ? और इसका बहुत गहरा व बुरा परिणाम स्वामी विवेकानन्द को भुगतना पड़ा | स्वामी विवेकानन्द की इच्छा गलत नहीं थी – वह 1893 के Chicago सम्मेलन में इस उम्मीद से गए थे कि मैं पाश्चात्य जगत को अध्यात्म की बेहिसाब संपदा दूंगा और इसकी एवज में वे उनकी झोली करोड़ों रुपयों से भरा देंगे |

 

स्वामी विवेकानंद पाश्चात्य जगत को समझ ही नहीं पाए | उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि जिस पाश्चात्य जगत के लोगों की तालियों की गढ़गढ़ाहट से सारा माहौल गूंज उठा था उन्होंने उनकी झोली में एक धेला donation भी नहीं दी | मुझे पूर्ण विश्वास है यही वह नासूर है जिसके कारण स्वामी विवेकानंद दुनिया को जल्दी अलविदा कह गए | स्वामीजी अंत समय तक पाश्चात्य जगत से खाई चोट भूल नहीं पाए |

 

आज के समय में हर भारतीय साधक को ध्यान रखना चाहिए कि हमें पाश्चात्य जगत के लोगों के लिए नहीं बल्कि भारत में रह रहे लोगों के लिए काम करना है | पहले मैंने भी यही गलती की – शायद रोटिरोजी के कारण ! अब मेरा पूर्ण अस्तित्व सिर्फ और सिर्फ उन भारतीय साधकों के लिए है जो इसी जन्म में स्वामी विवेकानन्द बनना चाहते हैं | यह मेरी पहली website है जो हिन्दी में है | अब सभी videos मैं हिंदी में बना रहा हूं सिर्फ और सिर्फ भारतीयों के लिए |

 

Nishkama Karma Yoga | निष्काम कर्म योग का महत्व | Vijay Kumar Atma Jnani

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