अध्यात्म


अध्यात्म से हमें क्या मिलता है ?

हम मूलतः एक दिव्य शक्ति हैं – एक आकाशीय तत्व जिसे सनातन शास्त्र आत्मा के नाम से पुकारता है | जब से हम परम तत्व यानी ब्रह्म से अलग हुए, अशुद्धियां हमसे जुड़ती, लिपटती चली गईं | बस इन्हीं अशुद्धियां को दूर करने के लिए ब्रह्म ने 84 लाख योनियों का सफर रचा | हमने 73 लाख योनियां पार करने […]


मैं और अध्यात्म – सही या ग़लत ?

आज के समय में अगर कोई व्यक्ति कहे कि मैं आध्यात्मिक सफर में हूं – मैं वेदों, उपनिषदों और भगवद गीता में निहित ज्ञान को समझने की कोशिश कर रहा हूं – तो क्या वह आध्यात्मिक हो गया ? कोई अगर सतसंगों, प्रवचनों में इसलिए जाता है कि आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त होगा – तो क्या वह व्यक्ति सही कर रहा […]


अध्यात्म की सरल परिभाषा क्या है ?

अध्यात्म यानी ऐसी चेष्टा जिसके माध्यम से अपनी आत्मा के नजदीक पहुंचा जा सके, उसे जाना जा सके | अगर हमें अपनी आत्मा के नजदीक जाना है, अपनी आत्मा के साथ आत्मसात होना है तो हमें प्रभु ब्रह्म की शरण में जाना होगा | प्रभु दिखते नहीं, ना ही दर्शन देते हैं तो प्रभु की शरण में जाएं कैसे ? […]


मैं आध्यात्मिक हूं कहना सही है या गलत ?

भारतवर्ष में ही नहीं अपितु पूरी धरती पर अगर कोई साधक कहे कि वह आध्यात्मिक है तो वह पूर्णतः गलत है – 100 प्रतिशत | शक की कोई गुंजाइश ही नहीं | जहां मैं – वहां अध्यात्म कैसा ? सच्चा आध्यात्मिक साधक वही हो सकता है जो जीवन में एक दिन भी खुद के लिए न जिए | जो खुद […]


अध्यात्म में सबसे बड़ा लोचा क्या है ?

आध्यात्मिक सफर में सबसे बड़ी परेशानियां क्या हैं ?   १. जिसे प्राप्त करना है वो दिखता नहीं (परमात्मा) |   २. जिसको प्राप्त करना है वह भी खुद को देख नहीं पाता (हम अपनी आत्मा देख नहीं सकते) |   ३. जो रास्ता है वह अंदरूनी है, सबके लिए अलग | किसी को कुछ पता नहीं |   ४. […]


जानवरों के लिए ईश्वर जन्म-मरण स्वर्ग-नर्क की क्या महत्वता है ?

पशु योनि भोग योनि है | पशु योनि में प्रभु, स्वर्ग नरक की कोई कल्पना नहीं | हां जन्म मरण तो वह भी देखते हैं और भुगतते हैं लेकिन उनके पास और चारा भी क्या है | जैसे ही आत्मा पशु योनि छोड़ मनुष्य योनि में आती है तो ईश्वर, जन्म मृत्यु का चक्र और स्वर्ग नरक की कल्पना, सब […]


क्या हम अमर हैं तो किस रूप में ?

मनुष्य रूप सिर्फ एक योनि है, अस्थाई स्वरूप जो हमारी आत्मा ने एक जीवन के लिए धारण किया है | अमरत्व तो आत्मा की property है | हमारी आत्मा चेतन होते हुए भी अशुद्धियों से घिरी है | इन्हीं अशुद्धियों को दूर करने के लिए आत्मा ने हमें धारण किया है | अध्यात्म के रास्ते पर चल कर जब हम […]


वृद्धावस्था में आध्यात्मिकता क्यों आती है ?

जब इंसान जीवन की अंतिम घड़ियां गिन रहा होता है, जब सत्य हम पर हावी हो जाता है, तो आत्मा पूरे गुजरे हुए वक़्त का अवलोकन कराती है | लेकिन आंसुओं के अलावा कुछ नहीं मिलता | जीवन तो मौज मस्ती में गुजार दिया, अब जाते वक़्त अध्यात्म क्या करेगा | आत्मा दोबारा शरीर लेकर लौटेगी | अच्छे कर्म किए […]


हमें भगवान की जरूरत क्यों है ?

हमे भगवान की जरूरत तब महसूस होती है जब डर सताता है | अपने कुशलक्षेम की खातिर हम भगवान को समय समय पर याद करते रहते हैं | मंदिर जाते हैं, पूजापाठ में लगे रहते हैं, भजन कीर्तन करते हैं | आध्यात्मिक साधक को भगवान की जरूरत तब महसूस होती है जब वो भगवान को जानना चाहता है, पाना चाहता […]


आध्यात्मिकता क्या है और धार्मिक कार्य किसे कहते हैं ?

जब इंसान अपनी खुद की पहचान ढूंढने की कोशिश करता है – में कौन हूं, कहां से आया हूं, भगवान से क्या नाता है तो वह आध्यात्मिक कहलाता है | अध्यात्म का सफर अंदर की ओर होता है ध्यान और चिंतन के माध्यम से |   आध्यात्मिक होकर साधक पहले स्वामी विवेकानंद की स्थिति और फिर रामकृष्ण परमहंस के level […]


स्वयं की आंतरिक शक्तियां कैसे जाग्रत करे ?

आध्यात्मिक साधक को आध्यात्मिक सफर में एक बार भी आंतरिक शक्तियों के बारे में नहीं सोचना चाहिए | क्यों ? भगवद गीता में कृष्ण क्या कहते हैं – फल की चिंता न करो | मनुष्य का काम है कर्म करना, क्योंकि फल तो हमेशा मालिक का होता है और शरीर का मालिक कौन है – हमारी आत्मा |   आध्यात्मिक […]


हम ईश्वर के अंश हैं और अंत में उसमें मिल जाना है फिर जन्म मृत्यु सुख दुख संसार मोह आदि क्यों ?

शुरू से पूरे क्रम को देखिए – 1. प्रलय हुई और पिछला ब्रह्माण्ड सिमट रहा है | ब्रह्माण्ड सिमट कर अस्थ अंगुष्ठ (आधे अंगूठे) के आकार में आ जाता है यानी ब्रह्म अपना original स्वरूप प्राप्त कर लेते हैं | ब्रह्म यानि पूरे ब्रह्माण्ड में स्थित हर आत्मा जब प्रलय के समय automatically 84 लाखवी योनि में स्थापित हो जाती […]


आध्यात्म और दर्शन दोनों एक-दूसरे के पर्याय हैं क्या ?

भारतीय दर्शन शास्त्र वह ज्ञान है जो वेदों, उपनिषदों और भगवद गीता में प्रतिपादित है, जिसका मूल स्वयं ब्रह्म से ग्रहण किया गया है | अध्यात्म दर्शन की वह शाखा है जिस पर चलकर एक साधक ब्रह्म तक पहुंच सकता है |   दर्शन principle है और अध्यात्म उस प्रिंसिपल के गूढ़ तत्व (यानी ब्रह्म) तक पहुंचने का रास्ता | […]


भविष्य में मनुष्य अध्यात्म की ओर लौटेगा या नहीं ?

कलियुग में इंसान मैं पर आधारित है – ये भी मेरा हो जाए और वह भी | होड़ ही होड़ – जहां देखो वहां होड़, रुकने का नाम ही नहीं ले रही | भौतिकवाद चरम पर है – दुनिया के सारे comforts चाहिए और आध्यात्मिक होने का ढोंग | हर इंसान धार्मिक रूढ़िवादिता, अनुष्ठानों में उलझा हुआ और पूछो तो […]


अध्यात्म की अनुभूति की पात्रता है या नहीं कैसे जानें ?

जब बालक पैदा होता है और थोड़ा बड़ा होकर play school जाने लायक होता है, और पहली बार स्कूल में कदम रखता है तो क्या हम यह जानने की कोशिश करते हैं कि उसमें स्कूल जाने की पात्रता है या नहीं ?   धरती पर उपस्थित हर मनुष्य को एक न एक दिन अध्यात्म के रास्ते पर चल मोक्ष पाना […]


क्या पेशेवर व्यक्ति आध्यात्मिक हो सकता है ?

अंगुलिमाल एक पेशेवर हत्यारा, जिसको भी मारता, एक अंगुली काट गले में माला में डाल लेता | बुद्ध के दर्शन क्या हुए, कुछ प्रश्नोत्तर और सब छोड़ बुद्ध का शिष्य बन गया | बुद्ध ने सिर्फ इतना कहा था थम्म | अंगुलिमाल ने सोचा मुझे थम्म कहने वाला कौन आ गया, आज तक तो मैंने ही लोगों को रोक कर […]


उच्च शिक्षित व्यक्ति अध्यात्म में गहरी रुचि क्यों लेते हैं ?

उच्च शिक्षा ग्रहण कर कुछ सच्चे इंसानों को जब यह अहसास होता है मरने के बाद साथ कुछ नहीं जाएगा, अगले जन्म में फिर nursery class से सब कुछ दोबारा हांसिल करना होगा, तो अन्दर से उत्पन्न घबराहट और हृदय से आती कृष्ण की आवाज़ उन्हें अध्यात्म में उतरने के लिए प्रेरित करती है | वह अलग बात है successful […]


आध्यात्मिक ऊँचाई नापने का कोई उचित तरीक़ा बता सकते हैं ?

अगर कर्मफल की इतनी ही चिंता है तो अध्यात्म त्याग किसी commercial enterprise में लग जाओ | फिर आराम से profit गिनते रहना | कृष्ण ने भगवद गीता में कितने साफ शब्दों में कहा, कर्म करो निष्काम भाव से, कर्मफल की चिंता किए बिना | लेकिन हमारी मैं के सामने कृष्ण भी कुछ नहीं | कर्म कर रहे हैं तो […]


अध्यात्म में क्या ऐसी स्थिति आती है जब बाहर से ग्रंथ संत गुरु आदि की आवश्यकता न हो ?

अध्यात्म में सत्य की राह पर चलते चलते आखिर में ऐसी स्थिति आ ही जाती है जब वह स्वयं से बात करने लगता है | स्वयं से बात करने से मतलब है – अपने हृदय में स्थित कृष्ण (सारथी), यानि हमारी अपनी आत्मा की आवाज़ हमें स्पष्ट सुनाई देती है | जब ऐसा होगा तो सम्पूर्ण भगवद गीता में निहित […]


अध्यात्म में रहकर शान्ति मिलती है क्या सच में ?

शांति तो इतनी मिलेगी की खुशी से फूले नहीं समाओगे, लेकिन उस अशांति का क्या जो जीवन में एक मिनट भी चैन से बैठने नहीं देगी (आपकी पत्नी) |   गृहस्थ में रहकर अध्यात्म की साधना करना एक relative term है | हमें balance बनाकर चलना होता है भौतिक और आध्यात्मिक life में | मुश्किल है असंभव नहीं | अगर […]


अधिकांश बुद्धिजीवी अध्यात्म में गोता क्यों लगाते हैं ?

बुद्धिजीवी जो होशियार हैं तभी तो कारोबार में सफल हैं – समय आने पर अक्सर अध्यात्म की ओर झुक जाते हैं | झुक तो जाते हैं पर सफल एक भी नहीं होता | क्यों ?   लगभग हर successful बुद्धिजीवी 65 ~ 70 वर्ष की आयु में अध्यात्म की ओर मुड़ना चाहता है | जीवन में जो करना चाहते थे […]


आध्यामिकता कितनी आवश्यक है – यह जीवन को किस प्रकार प्रभावित करती है ?

हम इस जीवन में कब आध्यात्मिक होंगे यह पिछले जन्म के कर्मफल पर आधारित है | आध्यात्मिकता तो जीवन का कारण है | आत्मा ने यह मनुष्य शरीर धारण ही शुद्धि प्राप्त करने के लिए लिया है लेकिन अबोध मनुष्य हमेशा अनजान बनकर धार्मिक क्रियाओं/ अनुष्ठानों में व्यस्त रहता है – जानते हुए कि धार्मिक क्रियाकलापों से आत्मा को शुद्धि […]


अध्यात्म की दृष्टि में सारे दुनिया जहान की खबर रखना गलत है ?

द्रौपदी के स्वयंवर में अर्जुन को मछली कि आंख क्यों नहीं दिखाई दी ? उन्हें सिर्फ दिखाई दिया मछली कि आंख का वो core जहां तीर मारना था | अर्जुन जैसी एकाग्रता जब तक साधक में नहीं होगी, अध्यात्म की सीढ़ी पर कुछ हासिल नहीं होगा |   भारतीय दर्शन शास्त्र इतने विराट, विस्तृत हैं कि विवेक का सही इस्तेमाल […]


किसी आध्यात्मिक व्यक्ति का व्यवसाय करना सही है क्या ?

अध्यात्म कभी किसी व्यावहारिक क्रिया में आड़े हाथों नहीं आता | अगर आप तैयार हैं तो business खुल कर करें | मेरा goal ब्रह्म तक पहुंचना था इसलिए ब्रह्म ने किताब लिखने की इजाज़त नहीं दी | लेकिन मैं अपने business में managing director था, एक ऑफिस कोचीन में और एक मद्रास में |   पिताजी और भाई के साथ […]


क्या आध्यात्मिक न होना बेकार होना है ?

आध्यात्मिक सफर के लिए ब्रह्म ने 11 लाख मनुष्य योनियों का चक्रव्यूह और 1 करोड़ वर्ष की अवधि दी है | चाहे हम अध्यात्म में इस जन्म में उतर जाए या फिर आत्मा पर छोड़ दें कि वह किस योनि में फिर से अध्यात्म में प्रवेश करेगी |   यह ध्यान रहे हमारा यह पहला और आखिरी जन्म है | […]


आध्यात्मिक व्यक्ति विशेष कैसे है ?

जब से धरती बनी और मानव अस्तित्व में आए – कितने महावीर, बुद्ध या महर्षि रमण आए और गए | 800 करोड़ में ऐसे लोगों को अंगुलियों पर भी गिनने की जरूरत नहीं | जितने भी साधक अध्यात्म के रास्ते पर seriously चल रहे हैं – वह विशेष नहीं हुए तो क्या ?   अध्यात्म का सफर कमर तोड़ देता […]


अध्यात्मिकता के विषय को इंसान रुचि से क्यों नहीं लेता या समझता है ?

आत्मा आनंदमय है एक मिथ्या है | क्यों ? जिस आत्मा का खुद का temperature 1 करोड़ degrees Celsius हो और जो सूर्य के गर्भ में स्थित हो वह अशुद्धि की अवस्था में आनंदमय हो ही नहीं सकती | अशुद्ध है तभी तो 84 लाख योनियों के फेर से गुजरती है |   आनंद की स्थिति तो मनुष्य की होती […]


आध्यात्मिक होने की प्रक्रिया क्या है ?

आध्यात्मिक हुआ नहीं जाता, सब कुछ पीछे से आता है, पिछले जन्म से | अगर इस जन्म में हम अध्यात्म की राह पकड़ेंगे भी तो किसी के कहने पर नहीं | कोई कितनी भी कोशिश कर ले किसी अन्य को अध्यात्म की राह पर मोड़ ही नहीं सकता, शायद भगवान भी नहीं |   अगर हम पीछे से आध्यात्मिक नहीं […]


अध्यात्म में चमत्कार क्या होता है?

अध्यात्म में चमत्कार की कोई जगह नहीं – नाममात्र को भी नहीं |   जब महावीर के पास एक बुजुर्ग हाथ में कुछ संभाले, चादर में लपेटे आने को हुए – महावीर ने हाथ के इशारे से दूर से ही रोक दिया | महावीर अवधिज्ञान के द्वारा जान चुके थे कि मृत बालक में जान फूंकवाना चाहता है – महावीर […]


अध्यात्म भी कभी तनावपूर्ण हो सकता है क्या ?

अध्यात्म का सफर तनावपूर्ण कम परेशानी भरा ज्यादा कह सकते हैं | अगर साधक तनाव में रहेगा तो आध्यात्मिक उन्नति न के बराबर होगी | तनाव की स्थिति में ध्यान/ चिंतन हो ही नही सकता |   हां अगर आप गृहस्थ हैं तो पूरा जीवन परेशानियों से जूझने में गुजरेगा | कभी पैसे की चिंता, कभी पत्नी के साथ चिक […]