जब बालक पैदा होता है और थोड़ा बड़ा होकर play school जाने लायक होता है, और पहली बार स्कूल में कदम रखता है तो क्या हम यह जानने की कोशिश करते हैं कि उसमें स्कूल जाने की पात्रता है या नहीं ?
धरती पर उपस्थित हर मनुष्य को एक न एक दिन अध्यात्म के रास्ते पर चल मोक्ष पाना है, चाहे इस जन्म में या 4 जन्म बाद | ब्रह्म ने 11 लाख मनुष्य योनियों का फेर जो दिया है | भौतिकवादी अध्यात्म से कोसों दूर रहते हैं | यह जिम्मेदारी मनुष्य की है वह किस जन्म में अध्यात्म का रुख करेगा | इसमें ब्रह्म बीच में नहीं आते लेकिन हमारी अपनी आत्मा जरूर दखलंदाज़ी करती रहती है | कैसे ?
हमारी आत्मा जिसने यह शरीर धारण किया है हमेशा से चाहती है जल्द से जल्द जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त होना | इसके लिए वह सुप्तावस्था में सपनों के माध्यम से हमें याद दिलाती रहती है कि हम अपनी मैं पर अंकुश लगाएं और सम भाव व निष्काम भाव से अध्यात्म के रास्ते पर आगे बढ़ें | अक्सर लोग ऐसे सपनों को interpret नहीं करते/ करना चाहते और भौतिकवादी बने रहते हैं |
अध्यात्म की अनुभूति तो छोटे से छोटे और बड़े से बड़े इंसान को समय समय पर होती रहती है | लेकिन हृदय से आती कृष्ण/सारथी (अपनी आत्मा) की आवाज़ को सुने कौन ?
अगर हम अध्यात्म के रास्ते पर जाना चाहते है तो सत्य का मार्ग अपनाना होगा | यह अध्यात्म की पहली जरूरत है | लोग झूठ की राह पकड़े हैं तभी तो धार्मिक अनुष्ठानों में लगे रहते हैं | अपने दिल को झूठी तसल्ली देते रहते है कि यही अध्यात्म है | जिस साधक में सत्य के मार्ग पर चलने की क्षमता है उसे अध्यात्म में उतरने से कोई नहीं रोक सकता, खुद ब्रह्म भी नहीं |
Listen to Inner Voice coming from within our Heart | हृदय से आती आवाज को सुनना सीखें | Vijay Kumar