हम मूलतः एक दिव्य शक्ति हैं – एक आकाशीय तत्व जिसे सनातन शास्त्र आत्मा के नाम से पुकारता है | जब से हम परम तत्व यानी ब्रह्म से अलग हुए, अशुद्धियां हमसे जुड़ती, लिपटती चली गईं | बस इन्हीं अशुद्धियां को दूर करने के लिए ब्रह्म ने 84 लाख योनियों का सफर रचा | हमने 73 लाख योनियां पार करने के बाद पहली बार मनुष्य रूप धारण किया | 73 लाख निचली योनियां हमने अमीबा, कीट पतंगों, पेड़ और पशुओं की योनियां में काटी |
मनुष्य रूप में हमें ज्यादा से ज्यादा 11 लाख योनियों का सफर तय करना है – तब जाकर हमें जन्म मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलेगी | बस यहां अध्यात्म का खेल शुरू होता है | सनातन शास्त्र जैसे वेद, उपनिषद और भगवद गीता कहते हैं – अगर हम छोटी उम्र में अध्यात्म की राह पकड़ लें और ध्यान और ब्रह्मचर्य के सूत्रों को आत्मसात कर लें तो हम इसी जन्म में 84 लाखवी योनि में स्थापित हो सकते हैं | इसके लिए सिर्फ 12~14 साल की तपस्या की जरूरत होती है |
यह अध्यात्म ही है जिस पर सवार होकर आदि शंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस और महर्षि रमण इत्यादि खुद को 84 ऴाखवी योनि में स्थापित कर ब्रह्म साक्षात्कार कर हमेशा के लिए ब्रह्मलीन हो गए | बिना अध्यात्म में उतरे – मोक्ष मुक्ति संभव नहीं |
What is the real meaning of spirituality? अध्यात्म का वास्तविक अर्थ क्या है ? Vijay Kumar Atma Jnani