आध्यामिकता कितनी आवश्यक है – यह जीवन को किस प्रकार प्रभावित करती है ?


हम इस जीवन में कब आध्यात्मिक होंगे यह पिछले जन्म के कर्मफल पर आधारित है | आध्यात्मिकता तो जीवन का कारण है | आत्मा ने यह मनुष्य शरीर धारण ही शुद्धि प्राप्त करने के लिए लिया है लेकिन अबोध मनुष्य हमेशा अनजान बनकर धार्मिक क्रियाओं/ अनुष्ठानों में व्यस्त रहता है – जानते हुए कि धार्मिक क्रियाकलापों से आत्मा को शुद्धि नहीं मिलती |

 

यह सब करवाती है हमारी अपनी मै जिस पर वाकई किसी भी इंसान का कंट्रोल नहीं | अगर हम खुद की आध्यात्मिक उन्नति चाहते हैं तो मैं पर नियंत्रण स्थापित करना होगा – शनै शनै | काम मुश्किल है और टेढ़ा भी लेकिन और कोई चारा भी नहीं |

 

इसी कारण मैं पर कंट्रोल स्थापित करने के लिए पांचों इन्द्रियों पर अंकुश लगाना होगा और धीरे धीरे सभी इन्द्रियों पर पूर्ण कंट्रोल स्थापित करना होगा |

 

जब हम ध्यान में चिंतन के माध्यम से उतरते हैं तो इन्द्रियों पर control स्थापित होना शुरू हो जाता है या कहें कर्मों की निर्जरा होनी शुरू हो जाती है | जैसे जैसे चिंतन प्रगाढ़ होता है, कर्मों की निर्जरा भी तेज हो जाती है |

 

अब तय करने वाली बात यह है कि हम अध्यात्म के सफर में पूरी तरह से कब उतारना चाहते हैं | सब कुछ हमीं पर निर्भर है, ब्रह्म ने तो मनुष्य रूप में 11 लाख योनियों के चक्रव्यूह में छोड़ दिया |

 

Right Age to start a Spiritual Journey | आध्यात्मिक ज्ञान लेने की सही उम्र | Vijay Kumar Atma Jnani

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