किसी व्यक्ति के मन में गृहस्थ जीवन में वैराग्य का भाव क्यों पैदा होता है ?


वैराग्य का भाव जरूरी तो नहीं इस जन्म के कर्मों के कारण हो – मूलतः ऐसे भाव पिछले जन्म से जुड़े होते हैं | इस जन्म में हमारी शादी होगी भी या नहीं, या हम स्वामी विवेकानंद के रास्ते पर ब्रह्मचारी बन निकल जाएंगे – सब पहले से तय है |

 

वर्तमान योनि में किए कर्मों का भी फल जुड़ता चला जाएगा लेकिन controlling तो पिछले जन्म का मृत्यु के समय का karmic balance ही है | क्योंकि ब्रह्म ने free will और विवेक दिया है – वर्तमान में हम अपनी destiny तय करने के लिए स्वतंत्र हैं |

 

मैंने life में जो कुछ भी किया 5 वर्ष की आयु से – वह हृदय से आती कृष्ण (अपनी आत्मा) की आवाज़ सुन कर किया | इस आवाज़ ने मुझे 1 बार भी धोखा नहीं दिया | अंदर से आवाज़ आयी और मैं 5 वर्ष की उम्र में ही ब्रह्म की खोज में निकल पड़ा |

 

विवेक का इस्तेमाल कर life का target set करें और आगे बढ़ जाएं | फिर पीछे मुड़ कर न देखें | जीवन में सफलता ही हाथ लगेगी |

 

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