भौतिकवादिता या आध्यात्मिकता – असली आनंद कहां है ?


आज के समय में हम महावीर, बुद्ध या महर्षि रमण को किस दृष्टि से देखते हैं – कौतूहल से या आनंदमय वाली स्थिति में ?

 

जो साधक आध्यात्मिक हैं, वह अच्छी तरह से समझते हैं आनंदमय होना कैसा लगता होगा | जब मुझे 1993 में ब्रह्म का 2 1/2 घंटे का साक्षात्कार हुआ, उस स्थिति को क्या में कभी बयान कर पाऊंगा ? क्या मुझे उचित शब्द मिलेंगे बयान करने के लिए ? क्या मानवता उस experience को कभी समझ पाएगी ?

 

अनुभव किया जाता है, ना समझा जा सकता, न समझाया | भौतिक जीवन में जो खुशी मिलती है वो क्षणभंगुर ही होती है | इसके विपरीत आध्यात्मिक जीवन की हर खुशी चिर आनंद प्रदान करती है |

 

आप Rakesh Jhunjhunwala के जीवन को ले लीजिए | भारत के सबसे बड़े stock broker ! जब मृत्यु हुई तो 48,000 करोड़ का साम्राज्य छोड़ कर गए ? किसके लिए ? और खुद साथ क्या ले गए ? अगर आध्यात्मिक होते तो कुछ अवश्य साथ जाता | मैंने जो कुछ लिखा है Google कर के देख लें, सब public domain में है |

 

भौतिक जीवन में खुशियां अपार मिली होंगी लेकिन आध्यात्मिक स्तर पर जीवन में शून्यता | अगले जीवन में, फिर वही nursery class से शुरुआत | जब इंसान आध्यात्मिक सफर में उतरता है तो जो तरक्की होती है वो permanent होती है | मृत्यु के बाद अगले जीवन में हम आध्यात्मिक सफर उसी point से शुरू करते हैं जहां पिछले जीवन में छोड़ा था |

 

हर आध्यात्मिक सफलता एक अजीबोग़रीब आनंद की अनुभूति देती है जिसको शब्दों में कभी भी बयान नहीं किया जा सकता |

 

How do you express Gratitude in words to God? भगवान की कृपा के प्रति कृतज्ञता | Vijay Kumar

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