मैं और अध्यात्म – सही या ग़लत ?


आज के समय में अगर कोई व्यक्ति कहे कि मैं आध्यात्मिक सफर में हूं – मैं वेदों, उपनिषदों और भगवद गीता में निहित ज्ञान को समझने की कोशिश कर रहा हूं – तो क्या वह आध्यात्मिक हो गया ? कोई अगर सतसंगों, प्रवचनों में इसलिए जाता है कि आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त होगा – तो क्या वह व्यक्ति सही कर रहा है ? कोई अगर किसी गुरु का सानिध्य/ spiritual retreat इसलिए attend कर रहा है कि आध्यात्मिक ज्ञान में प्रगति होगी – तो क्या यह सोच सही है ?

 

उपरोक्त में अगर एक बात भी सही होती तो न जाने कितने रामकृष्ण परमहंस या स्वामी विवेकानंद आ कर चले गए होते – क्योंकि सही आध्यात्मिक मार्ग पर अगर कोई चल पड़े तो स्वामी विवेकानंद की स्थिति में पहुंचने के लिए 12 वर्ष ही लगेंगे और रामकृष्ण परमहंस बनने के लिए 14 वर्ष की साधना/ तपस्या ! हमें बस इतना जानना है – अध्यात्म किसे कहते है | तपस्या यानि ध्यान कैसे करते हैं और अखंड ब्रह्मचर्य का सही पालन जिससे हमारे मार्ग से भटकने/ ऋषि विश्वामित्र बनने की गुंजाइश न रहे |

 

ध्यान करने में खलल पड़ जाए तो कोई बात नहीं लेकिन ब्रह्मचर्य की 12 साल की तपस्या में खलल पड़ गया तो पूरी तपस्या भंग हो जाएगी और दोबारा से 12 वर्ष की तपस्या में उतरना पड़ेगा | ऋषि विश्वामित्र ग्यारहवें वर्ष में मेनका को देख भटक गए – उन्हें 12 वर्ष की ब्रह्मचर्य की तपस्या दोबारा करनी पड़ी | ब्रह्मचर्य की मानसिक तपस्या बेहद कठिन है लेकिन असंभव नहीं | स्वामी विवेकानंद इस 12 वर्ष की ब्रह्मचर्य की अखंड तपस्या के लिए पूर्णतया परिपक्व थे फिर भी न जाने क्यों रामकृष्ण परमहंस को यह कहकर चले गए कि – आत्मज्ञान, ब्रह्म का साक्षात्कार अगले जन्म के लिए छोड़ता हूं |

 

800 करोड़ मनुष्यों में लगभग 140 करोड़ हिन्दू/ भारतीय/ सनातनी अध्यात्म की बातें तो करते हैं लेकिन इस राह पर चलने से घबराते हैं | ध्यान कैसे करना चाहिए – यह पद्धति विस्तार से मैंने ध्यान के video में समझाई है (और 700 करोड़ की कीमत का मंत्र free भी दिया है) लेकिन फिर भी कोई स्वामी विवेकानंद या रामकृष्ण परमहंस की राह पर चलना ही नहीं चाहता ! ब्रह्मचर्य के video में मैंने ब्रह्मचर्य क्या होता है और कैसे 12 वर्ष की अखंड तपस्या करते हैं – विस्तार से समझाया है और 100 करोड़ का मंत्र free दिया है लेकिन कोई समझे तो सही !

 

तो सबसे बड़ी समस्या कहां है ? मैं का इस्तेमाल करते ही सारा खेल खत्म हो जाता है | अगर कोई कहे – मैं यह प्राप्त करना चाहता हूं तो वह साधक सोलह आने गलत है | अध्यात्म यानि अपनी मैं को खत्म कर (जड़ से) – हम कर्मों की पूर्ण निर्जरा कर एक शुद्ध आत्मा बन जाएं | और देखने में यह आता है कि लोग अपनी मैं को घटाने की बजाय बढ़ाते रहते हैं – सोचने वाली बात है फिर आध्यात्मिक प्रगति होगी कैसे ? सच्चा आध्यात्मिक साधक खुद की आध्यात्मिक प्रगति के लिए नहीं – बल्कि पूरी मानव जाति के लिए जीता है – यही नहीं, वह निचली जातियों को भी पूरा सम्मान देता है | और इसी के परिणामस्वरूप ब्रह्म साधक को साक्षात्कार से नवाज़ते हैं – उसे मान सम्मान देते हैं |

 

इस छोटी लेकिन गंभीर बात का ज्ञान मुझे 6 1/2 वर्ष की अवस्था में पूरी तरह से हो गया था (शायद पिछले जन्मों के कर्मों के फलस्वरूप) | फिर क्या था – मैंने पूरी शिद्दत के साथ अपना आध्यात्मिक सफर शुरू किया | मन में काफी प्रश्न थे – दादाजी पूर्ण संन्यास धारण कर घर में ही रहते थे (अंततः वह नग्न दिगम्बर मुनि हो गए थे) | मैंने समय समय पर बेधड़क होकर उनसे उत्तर जानने की कोशिश की लेकिन वो टालते रहते | जब में 7 वर्ष का था तो एक Sunday को दादाजी ने message भिजवाया कि पप्पू (घर का नाम – आज वाला पप्पू नहीं) से कहना 7 AM पर मिल ले | मेरी खुशी का ठिकाना नहीं – दबे पांव कमरे में जाकर खड़ा हो गया | दादाजी ने देखा और कहा स्टूल पर बैठ जाओ |

 

फिर उन्होंने पहला प्रश्न पूछा, फिर दूसरा और तीसरा प्रश्न अभी आधा ही मुंह से निकला था – दादाजी बोले – पप्पू, तेरे किसी भी प्रश्न का उत्तर मेरे पास नहीं और न कभी होगा | और शायद तेरे प्रश्नों के उत्तर तुझे और कहीं से, किसी से भी नहीं मिल पाएंगे | तुझे खुद ही अपने प्रश्नों के उत्तर ढूंढने होंगे | मेरे मुंह से इतना ही निकला, जब आपको अथक प्रयास के बावजूद कुछ नहीं मिल रहा तो स्वाध्याय में क्यों लगे रहते हैं ? दादाजी कुछ बोले नहीं और मैं कमरे से बाहर आ गया |

 

कुछ दिनों बाद पिताजी कहने लगे – दादाजी के एक घनिष्ठ मित्र पंडित फूलचंद शास्त्री वाराणसी में रहते हैं | वे जैन धर्म के धर्माधिकारी, प्रगाढ़ ज्ञाता हैं और दादाजी ने उनसे बात कर ली है और अगर मैं 3~4 महीनों के लिए उनके पास जाना चाहूं तो दादाजी बंदोबस्त कर देंगे | मैंने कहा सोच कर बताता हूं | स्कूल से लंबी छुट्टी लेने की मुझे ज्यादा चिंता नहीं थी लेकिन चिंतन करने पर मुझे एहसास हुआ – मेरे प्रश्नों के उत्तर जैन धर्म से ज्यादा हिन्दू/ सनातनी शास्त्रों में मिलेंगे | दादाजी से पूछा – पंडित फूलचंद शास्त्री हिन्दू शास्त्रों के भी ज्ञाता हैं क्या – उन्होंने मना कर दिया | मैं नहीं गया |

 

अंततः मुझे अहसास हुआ – न जाकर सही किया | जब महावीर के बाद जैन धर्म के एक भी अनुयायी को ब्रह्म का साक्षात्कार नहीं हुआ तो जैन धर्म के पीछे भागने से फायदा ? 2600 वर्षों में जैन धर्म के कुछ followers को तो आत्मज्ञान प्राप्त हो जाना चाहिए था ! इसके विपरित सनातन परंपरा में 100 वर्षों में एक आत्मज्ञानी आ ही जाता है |रामकृष्ण परमहंस 1886 में गए और महर्षि रमन 1950 में और कल्कि अवतार का अवतरण होने को है | आप विश्वास नहीं करेंगे – जैन धर्म में पैदा होने के बावजूद मैं 5 वर्ष की अवस्था से ही भारतीय दर्शन शास्त्रों में ही उलझा और अंततः 37 वर्ष की आयु में ब्रह्म का 2 1/2 घंटे का साक्षात्कार हो ही गया |

 

अपने पूरे आध्यात्मिक जीवन में मैंने खुद का ज्ञान बढाने की कभी भी कोशिश नहीं की | बल्कि इसके विपरित मैंने ज्ञान के प्रकाश से अज्ञान के अन्धकार को काटने में हमेशा सफलता हांसिल की | जब यह बात समझ आ गई – जन्म से 97% मस्तिष्क बंद पड़ा है और जिस दिन वह पूर्ण 100% खुल गया तो सहस्त्रार खुल जाएगा, कुण्डलिनी पूरी जागृत हो जायेगी – बस हर प्रयास इस बंद पड़े मस्तिष्क को खोलने के लिए होने लगा | जब से होश संभाला (6 वर्ष की आयु) – समय तो जरूर लगा – पूरे 31 साल लेकिन ब्रह्म के साथ 2 1/2 घंटे रहने का आनंद – शब्दों के परे है |

 

पूरे विश्व में कोई भी साधक अगर ठान ले कि इसी जन्म में ब्रह्म से मिलना है – तो मेरा पूर्ण 200% विश्वास है कि मेरे videos में शनै शनै उतरे और मर्म तक पहुंचने की कोशिश करे | जिस दिन ध्यान और ब्रह्मचर्य कि सही प्रक्रिया पकड़ में आ गई – 12~14 साल ही लगेंगे रामकृष्ण परमहंस बनने में |

 

Dhyan kaise karein | ध्यान करने की सही विधि | Vijay Kumar Atma Jnani

 

12 years Brahmacharya benefits | 12 साल का अखंड ब्रह्मचर्य का जादू | ब्रह्मचर्य मंत्र | Vijay Kumar

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