आध्यात्मिक साधक को आध्यात्मिक सफर में एक बार भी आंतरिक शक्तियों के बारे में नहीं सोचना चाहिए | क्यों ? भगवद गीता में कृष्ण क्या कहते हैं – फल की चिंता न करो | मनुष्य का काम है कर्म करना, क्योंकि फल तो हमेशा मालिक का होता है और शरीर का मालिक कौन है – हमारी आत्मा |
आध्यात्मिक सफर में ब्रह्म अनगिनत अग्निपरीक्षाएं लेंगे और अनगिनत शक्तियां का प्रलोभन भी देंगें | अगर हमने एक भी शक्ति के लिए हां कर दी तो खेल खत्म | शक्ति तो हमें मिल जाएगी लेकिन आध्यात्मिक सफर का इस जन्म में हमेशा के लिए अंत |
शक्तियां कैसी – मैं अभी ज्यादा जिक्र तो नहीं करूंगा (सही समय आने पर ही) लेकिन इतना बता सकता हूं, कि एक बार ब्रह्म बोले अपनी mental शक्ति का परीक्षण करना चाहता है तो रात के समय छत पर बुलाया और कहा चांद की ओर देख |
मैं चांद की ओर देख रहा था कि अंदर से आवाज़ आयी, ब्रह्म कह रहे थे – मैं तुझे मंत्र देता हूं, उसका चांद की ओर देखते हुए उच्चारण कर और चांद के बीच में से दो टुकड़े हो जाएंगे | मुझे अन्दर से गुस्सा आ रहा था, मैंने ब्रह्म से कहा अगर एक टुकड़ा धरती से टकरा गया तो धरती खत्म, मनुष्य क्या एक भी जीव नहीं बचेगा | ब्रह्म बोले हां, तो मैंने तुरंत अपनी शक्तियों को अन्दर समेत लिया और घर के अंदर आ गया |
मुझे ब्रह्म पर इतना गुस्सा आ रहा था कि उनकी ऐसा पूछने की हिम्मत कैसे हुई ? क्या मैं इतना गिर गया हूं कि शक्तियों को हासिल करने के कारण सम्पूर्ण धरती ही नष्ट कर दूं | मैं अध्यात्म के पीछे इसलिए तो नहीं गया कि कुछ हासिल करना है, मैं तो बस और बस ब्रह्म को पाना चाहता हूं | जब गुस्सा शांत हुआ तो ब्रह्म से माफी मांगी और कहा, आगे से ऐसी अग्नि परीक्षा मत लेना |
मुझे क्या विश्वामित्र समझ रखा है, मेनका देखी तो फिसल गए | पूरे आध्यात्मिक सफर में ब्रह्म से हर तरह की नोकझोंक होती रही लेकिन मैं अपने मुकाम से एक बार भी हटा नहीं | हर बार ब्रह्म से कहता – जब आप के दर्शन हो जाएंगे उसके बाद जो दोगे ले लूंगा, पहले नहीं और वो हंस कर चले जाते, यह कहते हुए – ढीठ है मानेगा नहीं |
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