क्या हर किसी को आत्मज्ञान प्राप्ति का प्रयास करना चाहिए – यह क्यों जरूरी है ?


जरूरी तो नहीं आत्मज्ञानी बनने का बीज हमे इस जीवन में मिले ! मनुष्य रूप में 11 लाख योनियां होती हैं | किसी भी योनि में हम अध्यात्म की ओर अग्रसर हो सकते हैं बशर्ते हमारे कर्म ऐसे हों | अगर मनुष्य आत्मज्ञानी बनना चाहता है – तो इसका सीधा मतलब है पहले स्वामी विवेकानंद की स्थिति तक पहुंचना और फिर रामकृष्ण परमहंस या महर्षि रमण की स्थिति तक |

 

रामकृष्ण परमहंस या महर्षि रमण बनने का मतलब है कर्मों की पूर्ण निर्जरा – जन्म और मृत्यु के चक्रव्यूह से हमेशा के लिए छुटकारा (मुक्ति) | कहना आसान है – करना बेहद मुश्किल |

 

जीवन में हर चीज चाहत से नहीं मिलती | अगर निमित्त न हो तो इंसान चाहकर भी मंदिर नहीं जा पाता | मैंने ऐसे कई वाक़िए देखें और सुने हैं कि कई कोशिशों के बावजूद वह न हो सका जिसका निमित्त नहीं था | तो आत्मज्ञान प्राप्त करने की राह पर आपका निमित्त है – तो ही आप अध्यात्म में उतरेंगे अथवा नहीं |

 

हर मनुष्य का जीवन में आखिरी लक्ष्य मोक्ष (मुक्ति) ही है | आत्मज्ञानी, तत्वज्ञानी, कैवल्यज्ञानी मोक्ष प्राप्त करने से पहली सीढ़ी हैं – आत्मज्ञानी पुरुष जब शरीर त्यागता है तो मोक्ष हो जाता है |

 

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