अगर साधक ने ब्रह्मचारी रहकर आध्यात्मिक जागरण किया तो शायद परेशानी ज्यादा न आएं | सब कुछ निर्भर करता है आप पर परिवार में कितने आश्रित हैं | स्वामी विवेकानंद पर शायद कोई आश्रित नहीं था फिर भी कम उम्र में (39 वर्ष) उनकी मृत्यु हो गई |
महर्षि रमण पर उनकी मां आश्रित थी | वह पहले 11 वर्ष की अल्पायु में घर छोड़ कर भागे पर वापस आ गए | मां तपस्या के लिए घर से जाने की इजाज़त ही नहीं दे रही थी | मां ने रिश्ते देखने शुरू किए, कि बहू से बांध जाएगा तो अध्यात्म भूल जाएगा | रमण शादी के नाम से डर गया और 16 वर्ष की उम्र में भगवान को मां की जिम्मेदारी सौंप गायब, हमेशा के लिए |
क्या महर्षि रमण ने सही किया – 100% सही | अगर हमारा जीवन में ध्येय clear, fixed है तो शायद ब्रह्म भी ऐसे साधक को डगमगाते नहीं हैं | महर्षि रमण ने ब्रह्म से मां के लिए क्या मांगा – हे प्रभु, आज से मां के रहने, खाने पीने की जिम्मेदारी आपकी, ध्यान रहे मां को कपड़ों के 2 सेट हर साल मिलते रहने चाहिए | मैं आप के पीछे आ रहा हूं और अरुणाचल पर्वत पर चले गए |
कुछ सालों बाद जब किसी ने मां को बताया कि तेरा बेटा तो अरुणाचल पर्वत पर ज्ञान बांट रहा है तो वह भी हमेशा के लिए वहीं चली गई |
अगर साधक ने ब्रह्मज्ञान घर गृहस्थी में रहते प्राप्त किया हो तो क्या ? बस परेशानियों का पहाड़ टूट पड़ता है | भाई बहन की निगाह आपकी प्रॉपर्टी पर, रिश्तेदारों का कोई support नहीं, और खाने को घर में दाना नहीं | एक तत्वज्ञानी की अंतिम अग्नि परीक्षा अब शुरू होती है | गृहस्थ जीवन में रहते हुए तत्वज्ञानी होना वाकई में बहुत टेढ़ी खीर है | पूरी फैमिली suffer करती है | ताज्जुब की बात यह है कि तत्वज्ञानी फिर भी हार नहीं मानता |
बस consolation एक बात की रहती है | जिसने ब्रह्माण्ड बनाया, 24 घंटे उस ब्रह्म का आपके कंधों पर हाथ ! ब्रह्म साथ हैं तो कोई बड़ा अनिष्ट तो नहीं होगा लेकिन भौतिक जगत की पीड़ा हर कदम पर देखने को मिलेगी |
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