आध्यात्मिक दृष्टि से सभी इंसान सिर्फ और सिर्फ अपनी आत्मा के लिए जी रहे हैं | अगर कोई कहे मै तो भाई, बहन, माता पिता गुरु के लिए जी रहा हूं तो 70~80 वर्ष के बाद क्या ? आपका शरीर मर जाएगा – आप अविनाशी आत्मा हैं – नया शरीर धारण कर लेंगे | फिर नए माता पिता, भाई बहन और संसार यूं ही चलता रहेगा |
शरीर और रिश्ते दोनों क्षणिक हैं – उम्र पूरी होते ही खत्म ! लेकिन आप रहेंगे – नए शरीर और नए रिश्तों के साथ | बस भगवद गीता का सार यही है – पुण्य कर्मों में लगे रहो और कर्मफल की चिंता मत करो | फल सदा से आत्मा का था और रहेगा – मनुष्य रूप में आप जो भी कर्म करते हैं – उसका फल सीधे आत्मा को ही मिलता है |
अध्यात्म में उतर अगर हम इस गूढ़ रहस्य को जान लें कि हम सभी जो कुछ भी करते हैं वह आत्मा के लिए है और आत्मा चाहती है मुक्ति के द्वार तक पहुंचना (यानि जन्म मरण के चक्र से हमेशा के लिए मुक्ति) – तो मनुष्य हमेशा सही कर्म में उलझेगा | अध्यात्म की राह पर चलना मनुष्य रूप की मजबूरी है – चाहे इस जन्म में चल लें या भविष्य में आत्मा धारित अन्य शरीर में | 11 लाख मनुष्य योनियों का फेर है !
बात अनोखी सी दिखती है लेकिन है सोलह आने सच |
What is the main Purpose of Life? मानव जीवन का मकसद | Vijay Kumar Atma Jnani