हर भारतीय को यह बात हमेशा ध्यान रखनी चाहिए कि अर्जुन और कोई नहीं वह खुद है | महर्षि वेदव्यास ने महाभारत महाकाव्य की रचना सिर्फ इसलिए की कि हर मनुष्य अध्यात्म में उतर मोक्ष प्राप्त कर सके | अध्यात्म के रास्ते पर कैसे चलें यह भगवद गीता में वर्णित है | लेकिन भगवद गीता पढ़े कौन और पढ़ भी ली तो समझ नहीं आती ?
इसलिए कृष्ण अर्जुन उवाच के माध्यम से महर्षि वेदव्यास कहते हैं अगर हम खुद को सत्य के मार्ग पर स्थापित कर लें तो हृदय में स्थित कृष्ण (यानी हमारी अपनी आत्मा) की आवाज़ हम तक पहुंच जाएगी और बिना पढ़े ही भगवद गीता के 700 श्लोकों का मर्म हमें समझ आ जाएगा | लेकिन हकीकत में ऐसा होता तो नहीं ?
होगा कैसे ? हमने सत्य का दामन तो पकड़ा ही नहीं | जब तक हम 100% सत्य का साथ नहीं लेंगे, हृदय से आती कृष्ण की आवाज़ सुन नहीं सकेंगे | जब बच्चा छोटा होता है और झूठ बोलना नहीं जानता तो वह काफी हद तक हृदय से आती आवाज़ सुन सकता है | लेकिन पहले झूठ के बाद ही वो आवाज़ आनी बंद हो जाती है/ दब जाती है |
हर सच्चे साधक को कोशिश करनी चाहिए कि सत्य की राह पर चले | ऐसा करते ही हम अर्जुन बन जाएंगे और हृदय में बैठे सारथी कृष्ण की आवाज़ साफ सुन सकेंगे |
5 वर्ष की आयु में मैं हृदय से आती कृष्ण (आत्मा) की आवाज़ साफ सुन सकता था | झूठ बोल नहीं पाता इसलिए पिछले 63 सालों से हृदय से आती आवाज़ साफ सुन पाता हूं | यही कारण है कि बिना एक बार भगवद गीता खोले, अंदर का पूरा मर्म समझ आ गया और 37 वर्ष की आयु में ब्रह्म का 2 1/2 घंटे का साक्षात्कार हो गया |
What was the role of Arjuna in Mahabharata? आज का अर्जुन कौन आध्यात्मिक परिवेश में | Vijay Kumar