सच्चा आध्यात्मिक साधक जिंदगी का एक पल अकारण व्यर्थ नहीं करता – वह हर पल को जीता है | 70~80 वर्ष के जीवन में समय यूं ही गंवाने के लिए है ही कहां ? जीवन का हर पल चिंतन में व्यतीत करना होगा | अगर हम हर समय चिंतन नहीं करेंगे तो अपने अंदर उमड़ते हजारों प्रश्नों के उत्तर कैसे प्राप्त करेंगे | आध्यात्मिक राह पर गुरु भी नहीं मिलेगा – सब खुद ही करना होगा | अगर तत्वज्ञानी गुरु मिल भी गया तो उसकी वाणी समझ नहीं आएगी |
हमेशा ध्यान रहे – एक ही जीवन है | इस दुनिया में ज्यादातर लोग इस भ्रम में कि अगले जन्म में कर लेंगे – वर्तमान जीवन में कुछ भी आध्यात्मिक प्रगति नहीं करते | हम किस का बेवकूफ बना रहे हैं – भगवान का या खुद का ? ब्रह्म हमारी हर गतिविधि पर हर क्षण ध्यान रखें है – उनसे कुछ भी नहीं छिपा | अज्ञानी बन हम अपने जीवन का अमूल्य समय नष्ट कर रहे हैं | जब अगला जीवन है ही नहीं तो इंतज़ार किसका ? वर्तमान में कुछ तो आध्यात्मिक उन्नति करनी ही होगी |
हमे वर्तमान में जीना सीखना होगा – हमे अपने भौतिक और आध्यात्मिक जीवन में तालमेल बैठाना सीखना होगा – कठिन है असंभव नहीं | भौतिक यानी ब्राह्म जिंदगी और आध्यात्मिक यानी अंदर का सफर | हमे हृदय में स्थित खुद की आत्मा तक पहुंचना होगा | अपनी रोजमर्रा की जिन्दगी में हम कितने भी व्यस्त क्यों न हों – चिंतन हमें हर हाल करना होगा | मेरा ध्यान के ऊपर वीडियो अपने आप में पूर्ण है | कोशिश करेंगे तो सब समझ आएगा |
सच्चा आध्यात्मिक साधक ब्रह्म के साथ कभी लुकाछिपी नहीं खेलता | सत्यमार्ग पर चलकर वह हमेशा हृदय से आती ब्रह्म की आवाज़ को सुनने की कोशिश करता रहता है | यह ब्रह्म ही तो हैं जो खुद हमारे गुरु बनकर हमें आध्यात्मिक सफर में हमेशा गाइड करते रहते हैं | अगर हमें ब्रह्म ने बनाया है तो वह हमेशा से हमारे साथ भी है | मैंने 5 वर्ष की आयु में हृदय से आती ब्रह्म की वाणी को पहचान लिया था – बस फिर क्या था, आध्यात्मिक सफर आसान होता गया |
ध्यान रहे – हमें अर्जुन बनकर जीना होगा – हर पल हर क्षण | तभी आध्यात्मिक उन्नति संभव है | बिना अर्जुन बने आध्यात्मिक उन्नति संभव ही नहीं |
What was the role of Arjuna in Mahabharata? आज का अर्जुन कौन आध्यात्मिक परिवेश में | Vijay Kumar