जिंदगी का सबसे कठिन काम क्या है?


अपनी मैं पर कंट्रोल स्थापित करना | आज के समय चाहे आप 2 साल के बच्चे को देख लें (उसके हाथ से TV का रिमोट, या मोबाइल गेम लेने की कोशिश करके देखें) या किसी भी नौजवान अथवा वयस्क को, सभी के साथ समस्या यह है, हम अपनी इच्छाओं पर अंकुश लगाने को तैयार नहीं | मैं ही हमेशा अपनी इच्छाओं को क्यों दबाऊं, तुम क्यों नहीं |

 

अध्यात्म से जुड़े साधकों की तो यह सबसे बड़ी समस्या है | मैं पर कंट्रोल पाना चाहते हैं पर कैसे ?

 

एक आम इंसान और टाटा या अंबानी में क्या फर्क है, सिर्फ अपनी मैं और सोच का | किसी ने सही कहा है, हम जैसा सोचते हैं वैसा बन जाते हैं | अगर हम धीरे धीरे अपनी मैं पर संयम पा लें तो हम अपनी सारी शक्ति जीवन के मुख्य लक्ष्य की ओर निर्धारित कर सकते हैं |आप टाटा को देख लीजिए | वह हमेशा दुनिया का भला सोचते हैं, उनकी अपनी मैं कभी किसी को नजर ही नहीं आएगी |

 

जो इंसान हर समय दुनिया की भलाई के लिए जीता है, भगवान भी हमेशा उनकी सपोर्ट में खड़े रहते हैं | इसके विपरीत जो व्यक्ति हर समय अपनी मैं को प्राथमिकता देता है, औरों की कम सुनता है, नतीजा बनता काम बिगड़ जाता है |

 

अगर आप जीवन में कामयाब होना चाहते हैं तो खुल कर जीना सीखें, औरों की पहले सुने और फिर अपना decision लें | जीवन में कभी मार नहीं खाएंगे | अपने आध्यात्मिक सफर में, मैंने अपनी मैं को ५ वर्ष की आयु से उभरने ही नहीं दिया | नतीजा, औरो की, छोटों और बुजुर्गों की बात पर हमेशा गौर किया | जो सही लगा ग्रहण कर लिया और बाकी छोड़ दिया |

 

आध्यात्मिक सफर में हर जीव जंतु मेरे गुरु रहे | जिस किसी से जो सीखने को मिला, सीखा | चींटी से धैर्य और दृढ़ता, मेंडक से ब्रेस्ट स्ट्रोक स्विमिंग, न जाने क्या क्या, आजीवन सीखता ही रहा | मुझे याद नहीं ५ वर्ष की आयु से ३७ वर्ष की आयु तक, जब मुझे ब्रह्म का साक्षात्कार हुआ, मैंने एक बार भी खुद की मैं को एक बार भी support किया हो |

 

ये मैं ही है जो अच्छे से अच्छे साधक को आगे बढ़ने नहीं देती | पूरे संसार में सभी साधक मैं के चंगुल में फंसे हैं, और उनके बनाए हुए गुरु, उनसे भी ज्यादा | नतीजा, सब रुके हुए, ठहरें हुए हैं आगे नहीं बढ़ रहे | एक स्वामी विवेकानंद आ कर रह गया |

 

भौतिक जगत में भी, अगर व्यापार में कहीं रुकावट आ रही है तो वो किसी की मैं के कारण | आज के समय में अगर हर इंसान अपनी मैं पर कंट्रोल स्थापित कर ले तो कोई वजह नहीं कि हर इंसान जीवन में कामयाब न हो | स्कूलों में भी मैं के कारण अपनी जिद पर अड़ा स्टूडेंट अध्यापक की बात ग्रहण नहीं कर पाता | जीवन के हर क्षेत्र में हर कोई अगर रुका हुआ, ठहरा हुआ है तो मैं के कारण |

 

इस मैं से निकलने का एक ही रास्ता है | मैं कौन हूं, कुछ भी नहीं | मुझे धारण आत्मा ने किया है, काम भी उसके लिए कर रहा हूं (कर्मफल हमेशा आत्मा का होता है) तो इसमें मेरी मैं का क्या काम ? बस यही सोच मैं, अपनी मैं के चंगुल में कभी नहीं फंसा | हमेशा समभाव बनाए रखा और काम होते चले गए |

 

अपने ६७ साल के जीवन में मैंने लोगों को अपनी मैं के कारण, घुट घुट कर मरते देखा है | कितने ही असमय मृत्यु को प्राप्त हुए |

 

ब्रह्म से साक्षात्कार के बाद कितनी आयु शेष? Vijay Kumar Atma Jnani

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