बचपन में मैंने गुरु खोजने की भरपूर कोशिश की लेकिन असफलता ही हाथ लगी | फिर स्वयं ब्रह्म ही मेरे गुरु हो गए – कैसे, यह मैं अन्यत्र/ videos में बता चुका हूं | फिर आध्यात्मिक सफर में एक बड़ी विचित्र बात समझ आयी – सारी दुनिया गुरु ढूंढ़ती है, विलाप करती है भरोसे का गुरु कहां ढूंढे ?
अंदर से आवाज़ आई – किसको चाहता है – महावीर, बुद्ध, आदि शंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस या फिर महर्षि रमण | मुझे लगा आज ब्रह्म ज्यादा मेहरबान हो रहे हैं, वजह ढूंढनी चाहिए | सोचा तो निष्कर्ष पर पहुंच गया | अगर मुझे महर्षि रमण से कुछ पूछना हो तो मैं क्या करने लगा – महर्षि रमण द्वारा लिखी/ या उन पर लिखी पुस्तकें पब्लिशर्स के पास जाकर ढूंढी |
काफी पुस्तकें मिल गईं | उन पुस्तकों से हंस की भांति महर्षि रमण के सत्य वचनों को क्लेश से अलग किया और मुझे अपने प्रश्नों के उत्तर मिल गए | बस फिर क्या था | कुछ महावीर से पूछना हो तो महावीर पर लिखी पुस्तकें ले आया | यहां एक बात ध्यान रखने वाली है – हमें महावीर के विचारों में डोलना है – लेखक/ टीकाकार के नहीं, जिसकी सोच लिमिटेड होगी |
37 वर्ष की आयु में ब्रह्म का 2 1/2 घंटे का साक्षात्कार – जीवन क्रम पूरा हो गया |
What was the role of Arjuna in Mahabharata? आज का अर्जुन कौन आध्यात्मिक परिवेश में | Vijay Kumar