भक्त और भगवान का मिलन कब और कहाँ होगा ?


भक्त और ब्रह्म का मिलन सिर्फ और सिर्फ साक्षात्कार के समय होता है जब ब्रह्म काफी समय के लिए हमारे पास आकर बैठते है | काफी समय इसलिए क्योंकि ब्रह्म पहली योनि से 84 लाखवी योनि के दर्शन करातें है | साक्षात्कार के समय ब्रह्म मेरे साथ पूरे 2 1/2 घंटे रहे |

 

भक्त शब्द सही नहीं है क्योंकि ब्रह्म निराकार है | अध्यात्म में उतरे इंसान को साधक के रूप में पहचानना चाहिए | जो साधना करे, तपस्या में लीन हो वो भक्त कैसा ? भक्ति मार्ग पर चलकर जब रामकृष्ण परमहंस को ब्रह्म के दर्शन नहीं हुए तो उन्होंने अपना मार्ग भक्ति से ज्ञान मार्ग की ओर मोड़ा और भक्त से जिज्ञासु हो गए – चिंतन मनन करने वाला |

 

ब्रह्म की भक्ति पूजा पाठ में नहीं, भजन कीर्तन में नहीं – ब्रह्म तो पूर्ण समर्पण चाहते हैं | पूर्ण समर्पण तभी संभव है जब हम ब्रह्म के प्रति पूर्ण आस्था रखते हों | ब्रह्म में पूर्ण आस्था रखने वाले लोग धरती के कुल 800 करोड़ लोगों में 100 भी नहीं मिलेंगे | मुझे अपने 69 वर्ष के जीवन में अभी तक एक भी श्रद्धालु नहीं मिला जो ब्रह्म में 100% आस्था रखता हो – वो आस्था जो मेरी ब्रह्म में 5 वर्ष की आयु में थी – 100% से भी कहीं ज्यादा |

 

जो भक्त भगवान को साकार रूप में देखते और पूजते हैं – उन्हें तो भगवान इस जन्म में न तो मिलेंगे न समझ आएंगे | भगवान तो सिर्फ और सिर्फ चिंतन (contemplation) में उतरने से मिल सकते हैं | लगभग समस्त दुनिया के भक्त भ्रम में जीते रहते हैं – और महावीर, बुद्ध, रामकृष्ण परमहंस या महर्षि रमण के दिखाए रास्ते पर कोई चलना नहीं चाहता |

 

सब अपनी मैं और अपनी बनाई दुनिया में रमे हैं – तो भगवान कैसे मिलेगा ?

 

5 वर्ष की आयु से मैंने महावीर, बुद्ध, आदि शंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस और महर्षि रमण पर विश्वास नहीं किया – क्योंकि में खुद सबको सत्य के तराजू पर तोलना चाहता था | अगर खरे उतरे तो सहर्ष स्वीकार कर लूंगा | मेरा यह दृढ़ निश्चय था कि तत्वज्ञानी होने से पहले सभी आम इंसान थे जो मैं भी हूं – तो मैं उनके जैसे या उनसे आगे बढ़कर क्यों नहीं जा सकता !

 

यही संघर्ष एक दिन मुझे ब्रह्म के चरणों में ले गया और ब्रह्म का साक्षात्कार हो गया |

 

अध्यात्म और भेड़ चाल | Vijay Kumar Atma Jnani

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